आरंभ
तू आदि है, आरंभ है
इस सृष्टि का प्रारम्भ है ।
आरंभ तू नवचेतना का
हर अवसान का प्रारंभ है ।
तुझसे ही लय है सूर्य, चन्द्र
तुझसे धरा सम्पन्न है।
तू वायु में, तू वृष्टि में
तुझसे जगत आच्छन्न है ।
तू आर्त की पुकार में
शिशु की रुदन, किलकारि में
है शेष कौन सी जगह,
जहाँ तू नहीं आसन्न है ।
तू ज्ञान का आरम्भ है।
आगम, निगम प्रारम्भ है ।
तू स्वर सभी श्रुतियों का है
ध्वनि का भी आरंभ है।
नित्य अनित्य सब जगत का
एकमात्र तू ही प्रपंच है ।
साकार तू, निराकार तू
तू ही प्रलय प्रचण्ड है ।
तू आदि है, आरंभ है
तू सृष्टि का प्रारंभ है ।