“आरंभ से कोई मिला नहीं है”
बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं है;
सच में क्या कुछ दिखा नहीं है,
या नव उष्मा से वंचित हुँ मैं;
क्या नवप्रभात ने छुआ नहीं है,
☀️
संशय है कुछ मन के भीतर;
या मुक्त – आंदोलित – अह्लादित है सब,
प्रश्न भैरवी बन जीवन से; पुछती किंचित स्वर माधुर्य सी,
ये बतलाओ पथिक तुम पहले
खुद से आगे जो राह तुम्हारी…क्या उस पर पहले कोई चला नहीं है ?
या तुम हो नदियों की वो धारा; मिलती आखिर एक जगह सब,
पर आरंभ से कोई मिला नहीं है; आरंभ से कोई मिला नहीं है।
©दामिनी ✍