आय गाम हमरा हमर याद आबै लगल (कविता)
एकर बानि चालि चलनसँ कतौ घसब
मन होइए शहर छोड़ि बसि जेतौ ओतए
जतए किनको देखिकेँ लेलनि ओ घोघ झाप
यैह घोघ देखि जतऽ पैघ कहबि ओतए
अतय लौकत पगरि घरक मान तँ छाती के तान
मन होइए शहर छोड़ि बसि जेतौ ओतए
आय गाम हमरा हमर याद आबै लगल
एकर जौं हइ गमक हिय नेह देला जहर
मन होइए शहर छोड़ि बसि जेतौ ओतए
नहि चाही उचक्का अटार चाहै टका हजार
ओतऽ चारि सौ टका मे भेटैछ जे मान
मन होइए शहर छोड़ि बसि जेतौ ओतए
आय गाम हमरा हमर याद आबै लगल
अतय केना कहू कोना कहू केउ बोलाबै जखन
मन होइयै दू थाप रखि देतौ ओतय
जखन फुटल कमंडल नीक रहैए बात
मन परैये उ बात जे मा कहलन गठरी बान्ह
अप्पन भाषा संस्कारसँ करिह तो नाज
हमही चौंधियाये गेलहू भुललौ भाषा संस्कार
आब मन होइयै माहुर खाऊ खुआबी हिनका
फेरो मन परैये मा बाबू कनताह हमर
जखने शहर से गाम आयत दूटा लहाश
गामक गमया हसि हसि ठहका दैत मार
आय गाम हमरा हमर याद आबै लगल
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य