आयी ऋतु बसंत की
आयी ऋतु बसंत मधुर,करके अनुपम साज।
विद्वत कहते हैं इसे,यही सृष्टि की ताज।
यही सृष्टि की ताज,धरा लाए हरियाली।
नव पत्तों के साथ,सजे वृक्षों की डाली।
महक आम की बौर,लगे सबको सुखदायी।
हर्षित कविवर ओम,देख बसंत है आयी।।
लखकर ऋतु बसंत की, हर्षित सृष्टि अपार।
पुष्प महकते अति मधुर,दिखे सृष्टि में प्यार।।
दिखे सृष्टि में प्यार,बढ़े भू में हरियाली।
नव पत्तों के साथ, चमकती है हर डाली।
मधुर आम की गंध, उड़ाते भौरें चखकर।
हर्षित होता ओम,सृष्टि सुंदरता लखकर।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
कानपुर नगर