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2 Mar 2024 · 1 min read

आया हूँ

मैं ऊपरी मंजिल से उतर आया हूँ
के ख्वाब के हर पर कुतर आया हूँ

होश है के मैं हूँ किसकी जद में
उम्मीद को ताज्जुब है के किधर आया हूँ

वायदा झूठा करने को न राजी था मैं
झूठा वायदा करने से मुकर आया हूँ

न पूछ हालात कैसा है मेरे अंदर का
मैं अपने दिलो -दिमाग़ से गुजर आया हूँ

मुझे तलाश है खुदकी अब भी
बड़ी मुश्किल से खुदको नजर आया हूँ

मुझे रहने दे मुझमें लम्बे वक़्त के लिए
ये दुनिया देख – देख कर घर आया हूँ
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

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