आया सावन
कविता
शीर्षक – आया सावन
पर्ण-पर्ण हरीतिमा खिली है
मौसम क्या मनभावन है छाया। शु
हर हृदय की कली खिली है
सौंधी माटी ने है मन भरमाया।
झनन झनन झन बुंदियाँ बरसीं
सुन री सखी! सावन है आया।
संवर वसुंधरा नर्तन करती
प्रीत की ओढ़े हरी चुनरिया।
सांवरिया अम्बर मदमाता
प्रेम रस की बरसाए बदरिया।
पुष्प करें खिल खिल अभिवादन
उपवन ने त्योहार है मनाया।
महके हैं वन उपवन चहुंदिश
सुन री सखी! सावन है आया।
दादुर मोर पपीहा चिंतक
कुहू कुहू पीहू पीहू बोल रहे।
सतरंगी हुआ है यह जग
कर्ण मधुर रस रस घोल रहे।
पावस के पदार्पण से ही
चतुर्दिक यूँ आनंद है छाया।
लहक-लहक गुनगुनाए मन
सुन री सखी! सावन है आया।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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