आया दौर फिर भारत का
आज इक बार दौर फिर वो लौट आया है,
कभी 1907 में उठाया जो स्वदेशी का मसला आज उसे अपनाना है,
महामारी के इस दौर में हमें ही देश अर्थ को बचाना है,
आजादी से अब तक जो न हो पाया उसे करके दिखाना है,
छोड़ दिया जब पूरे विश्व ने साथ तो अपने ही अपने काम आए,
अब बारी है हमारी क्यूंकि उनको धरा से शिखर तक हमें ही पहुंचाना है,
धिक्कारते आए जिस लोकल को उनको ग्लोबल अब बनाना है,
टूटेगी न अब यह डोर कभी क्यूंकि उम्मीदों को उनकी अब जगाना है,
मेक इन इंडिया का सपना जो देखा कभी आत्मनिर्भर अब उसे बनाना है,
गुमनामी में देखे जो ख्वाब देश ने उनको साकार अब कर दिखाना है,
किया काम जो विश्व को विकसित करने में अब वो देश के लिए करना है,
देकर बढ़ावा लघु और कुटीर उद्योगों को उनका अस्तित्व अब बनाना है,
भुला दी सोन चिरैया की पहचान भारत की जो इस विश्व ने,
निभाकर फ़र्ज़ को अपने भारत की उस पहचान को अब हमें ही लौटाना है