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6 Mar 2021 · 1 min read

आयशा की सावरमती में आत्महत्या

जुर्म और अत्याचार आयशा ,सह न सकी इंसान के
खुद को मिटा गई दुनिया से, सावरमती में जान दे
साबरमती अवाक हुई, गांधी की आंखें पथराईं
कब नारी का दमन रुकेगा, सोच-सोच घबराईं
हे अल्लाह न मुझे दिखाना, चेहरे अब इंसान के
अंतहीन दर्द है मेरा, इतने घाव दिए इंसान ने
इंसानो के वेश में कितने, शैतान समाज में बैठे हैं
जन्नत है कदमों की नीचे, फिर भी नोच नोच खाते हैं
बहुत सहा अब सहा न जाता, मिटा रही हूं जिंदगानी
शायद शर्म करें इंसान, हो जाए पानी पानी
कितनी आयशा और पवित्रा, भेंट दहेज की चढ़ती हैं
लालच कितना गहरा है, अग्नि जल जहर से मरती हैं

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

Language: Hindi
8 Likes · 13 Comments · 451 Views
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