आम नागरिक के कर्तव्य
दे रहा हूँ सलामी इस तिरंगे को जो हमारी आन-बान और शान है
संरक्षण एवम सुरक्षा नारा के साथ बढ़ रहा अपना प्यारा हिन्दुस्तान है
हम भारतीय हैं, इसमें न ही कोई शक, कोई झिझक और न हीं कोई संकोच है. हम अपने देश से कितना प्यार करते हैं, इसे कोई नही बता सकता है. इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, यह निःशब्द है.
परन्तु हमारे देश की सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि हमारे देश के लोगों के दिल में भांति-भांति की भ्रांतियाँ पल रही हैं. कुछ लोग यह सोचते हैं कि देश की रक्षा तथा देश की एकता और अखंडता का सारा दायित्व देश की पुलिस और देश के फौजियों पर है. शायद उन्हें यह नही मालूम है कि देश की जिम्मेदारियाँ सिर्फ सरकार, पुलिस और सेनाओं की नहीं है बल्कि इसकी जिम्मेवारी हरेक नागरिक का है. कुछ लोगों की ये भी मानसिकता है कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण कर देश के प्रति सारी जिम्मेवारियों और देशभक्त होने का दायित्व की पूर्ति हो जाती है. अब देश की सारी जिम्मेवारी सरकार, पुलिस और सेना की है, वे देश की रक्षा करें, वे देश को सम्हालें. क्योंकि इसकी जिम्मेवारी उन्हें ही सौपी गई है. क्या ऐसी मानसिकता के साथ जीने से देश का उत्थान और विकास हो जाएगा ?. क्या ऐसी गैरजिम्मेदाराना सोच के साथ देश विकासशील से विकसित श्रेणी में आना संभव हो पाएगा ?. यह बहुत ही विचारणीय, सोचनीय और गंभीर विषय है.
मैं यह नही कहता की यहाँ कोई देशभक्त नही है या फिर किसी के दिल में देश के प्रति प्रेम नही है, यह देशभक्तों का देश है, हर भारतियों के रगों में देशभक्ति दौड़ती है. हर देशवासियों के दिल में कही न कही देशभक्ति की भावनाएँ हिलोरे लेती रहती है. मगर जाने-अंजाने में हम कभी न कभी, कहीं न कहीं देश को आहत करने का काम करते हैं, देश को क्षति पहुँचाने का काम करते हैं. चाहे हम देश के संविधान, नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ा कर रहें हों या देश की सम्पति, संसाधनों आदि को नुकसान पहुँचाकर कर रहे हैं या भ्रष्टाचार में सहायक हो रहें हैं. मतलब यह है कि कहीं न कहीं, कुछ न कुछ, किसी न किसी हद तक देश की विकास में रोड़ा अटका रहें हैं, बाधा पहुँचा रहें हैं. जो एक राष्ट्रभक्त की पहचान नही है.
ये बहुत ही गंभीर विषय है, जिस पर विचार करने की जरुरत है तथा इसमें सुधार करने की जरुरत है. यह हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है कि देश के विकास में बराबर का योगदान दें. देश को सुचारू ढ़ंग से चलाने के लिए जो भी नियम-कानून बनाए गए हैं उसका ईमानदारी पूर्वक अनुशासन के साथ पालन करें. देश की सम्पति, संसाधनों आदि का उचित उपयोग करें. जल, बिजली, सड़क, इमारतें, रेल आदि तथा देश की विभिन्न आधारभूत संरचनाओं और संसाधनों का उचित उपयोग करें. इन्हें नुकसान और दुरूपयोग करने की कोशिश न करें और न ही करने दें. लोगों में इस बात को लेकर जागरूकता होनी चाहिए और अगर जागरूकता नहीं है तो उन्हें जागरूक करने की जरुरत है. अगर इसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं तो हम गलत कर रहे हैं और देश के विकास में हम बाधक बन रहें हैं. जैसे आज लोग नागरिकता बिल का विरोध कर रहें हैं और विरोध के नाम पर लोग तोड़फोड़, आगजनी, पत्थरबाजी तथा सड़क-रेल जाम कर रहे है, ये बिल्कुल हीं गलत है. क्योंकि आप राष्ट्रीय सम्पति का नुकसान पहुँचा रहें हैं और राष्ट्रीय सम्पति का नुकसान पहुँचाना देशहित में नही है.
ये सबका संवैधानिक अधिकार है कि वे सरकार की अनैतिकता के खिलाफ तथा हो रहे अन्याय का विरोध करें परन्तु उसका भी एक तरीका होता है. हिंसा से या देश की सम्पति को नुकसान पहुँचाकर विरोध करना यह कहाँ तक उचित है?. मैं एक बात याद दिला देना चाहता हूँ कि जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने छात्र आन्दोलन का नेतृत्व किया था तथा पूर्ण स्वराज का नारा दिया था, तब वह आन्दोलन पूर्णतः अहिंसक था. लोगों ने शांतिपूर्वक रैलियाँ निकली, सड़को पर नारेबाजी किये, लोंगों को गिरफ्तार कर कारागार में डाल दिए गए, पुलिस की लाठियाँ बरसाई गईं, फिर भी उनका अहिंसक आन्दोलन थमा नहीं और न ही उन्होंने कभी हिंसा का सहारा लिया. अंततः आन्दोलन सफल रहा और परम्परागत रूप से चली आ रही सता को उखाड़ फेंका और भारत में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार ने भारत की सिंहासन पर अधिकार जमाया. जिस पर हमारे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था-
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करों कि जनता आती है
जहाँ तक पुलिस और फौजियों का सवाल है, वह एक माध्यम है देश की स्वंत्रता, एकता और अखंडता को कायम रखने का. देश की जिम्मेवारी देश के हर नागरिक का है. क्योंकि जब तक हम आंतरिक मुद्दों पर मजबूत नहीं होगे, तब तक हम बाहरी ताकतों से लड़ नही सकते और बाहरी ताकतों को जबाब नही दे सकते. इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारा देश विकास नही कर रहा है, संसार के मानचित्र पर अपना छाप छोड़ रहा है. इसलिए दुनिया की नजर हमेशा हमारे देश पर बनी रहती है. वे हर संभव यह प्रयास में रहते हैं कि कब इनकी शांति, एकता और अखंडता को भंग किया जा सके.
आज जो हमारे देश की स्थिति है वह बहुत ही सोचनीय है. देश में राष्ट्र विरोधी, अलगावादी और अवसरवादी ताकतें देश की जनता को गुमराह कर जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर लड़ा रहें हैं, दिन-प्रतिदिन सांप्रदायिक दंगे भड़का रहें हैं, लोग बात-बात पर सड़क पर निकल आ रहें हैं और सरकारी सम्पति को नुकसान पहुँचा रहें हैं, जिसका फायदा राष्ट्र विरोधी ताकतें उठा रहें हैं और इनको बहकाकर कुछ भी करवा ले रहें हैं, जिसका जीता-जगाता उदहारण अभी नागरिकता बिल है, जितने भी लोग नागरिकता बिल का विरोध कर रहे है उनमे से अधिकतर लोगों को मालूम नही है कि यह क्या है. लोग बस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे है, झुण्ड बना रहे है, जो एक कर रहा है वही सब कर रहे है, किसी को कुछ मतलब नहीं है कि ये क्या है और हम क्यों कर रहें हैं, सब कर रहें हैं इसलिए हम भी कर रहें हैं. लोग इस मानसकिता के साथ चल रहे है, जिसका फायदा राष्ट्र विरोधी ताकतें उठा रहें हैं. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, बौद्ध, जैन, पारसी में बाँट रहें और संप्रदायिकता का आग भड़का रहें हैं. भारत की यह बिडम्बना देखिए कि इसे कोई भी समझ नहीं पा रहा है और लोग संप्रदायिकता के आग का हिस्सा बनते जा रहें हैं. मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूँ कि अगर हम ऐसी मानसिकता के साथ जियेंगें तो राष्ट्र विरोधी ताकतें हमारा फायदा उठायेंगी. इसलिए उदारवादी बनिए, सोचिये, समझिए और फिर अपना योगदान दीजिए. ऐसा नही कि किसी के बहकावे में आकर अपना राष्ट्र का नुकसान पहुँचाए.
शायद हम यह भूल रहें हैं कि जब देश आजाद हुआ था, राष्ट्र का निर्माण हुआ था तब हमारे राष्ट्र निर्माणकर्ताओं ने क्या- क्या सपने संजोए थें, देश की क्या-क्या तस्वीर सजाई थी. जिससे की भारत एक विकसित राष्ट्र बन सके, सभी लोग सुख-शांति और अमन-चैन से अपना जीवन यापन कर सकें. परन्तु आज की तस्वीर बिल्कुल विपरीत है. लोग बात-बात पर हिंसक हो रहें हैं, देश के विकास में बाधक बन रहें हैं.
एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य बनता है कि सरकार की नीतियों का समर्थन करें और राष्ट्र के विकास में सहयोग करें, अगर वे नीतियाँ राष्ट्र विरोधी, लोकहित में या लोक कल्याणकारी नही हैं तो ये भी हमारा कर्तव्य बनता है कि उसका उचित तरीके से विरोध करें. हिंसा फैलाकर, आतंक फैलाकर, डर का माहौल कायम न करें, राष्ट्रीय सम्पति का नुकसान न पहुँचायें, देश के नियम-कानूनों की धज्जियाँ न उड़ायें. देश के हर नागरिक का ये अधिकार है कि वे एक जिम्मेदार नागरिक बनकर देश के उत्थान में अपना योगदान दें.
– एस के कश्यप (कालम का दरोगा)