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2 May 2024 · 1 min read

आम की गुठली

आज सभी के संग गांव जाना हुआ,
शहर की चकाचौंध में भूल गए थे गांव को
गांव में आकर सुहाना लगा।
पुरानी अपनी हवेली देखकर
बचपन याद आने लगा।
घूम-घूम,चूम-चूम मन
स्मृतियों में लहराने लगा।
एक दिन खेल-खेल में आम खाकर
उसकी गुठठी को पिछवाड़े में दबाकर
इंतजार जोरों से होने लगा।
पानी से सींचती गोबर खाद से पालती,
अंकुर फूटा,,नहीं रहा मेरी खुशी का ठिकाना,
कुछ दिन बाद गांव छोड़ शहर में हुआ आना,
उदास था मेरा मन और सारी काया
जिस गुठठी को मैनै जतन से उपजाया
अब उसी को था करना पराया,
रोते हुए काकी,फूफी को बताया,
मेरी तरह का भी लाड़ लड़ाना
इस पर अपना प्यार बरसाना।
लो बेटा कह,आम हाथ में थमाया,
काकी ने स्मृतियों से मुझे जगाया।
हैं यह वही गुठठी का आम जिसे तुमने
मिट्टी में फिर बनने के लिए दबाया,
प्रेम से सिंचित कर उपजाया,
सुन कर मुझे विश्वास नहीं हो पाया
आंखों बहने लगी आंसु की धारा
चेहरे पर मुस्कान और रोमांचित काया
झट से भागी वहां जहां मैनै वो गुठठी को दबाया।
लिपट कर उस विटप पर अपना प्रेम जताया।
– सीमा गुप्ता अलवर

Language: Hindi
265 Views
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