आम और खास
चुनाव के समय हम खास थे, अब आम हो गए
हाथ जोड़े दरवाजे पर खड़े थे,
अब वीवीआइपी हो गए
कैसे काले डूंड से लगते थे, अब तो सुर्ख लाल हो गए
रहते थे कभी फटे हाल, अब तो मालामाल हो गए
पहले तो हंस हंस के मिलते थे,
अब आंखें तरेरते हैं,
खिसियानी सी हंसी खींसें निपोरते हैं
काम तो वे खास के ही करते हैं, हम तो आम हैं
चूसके गुठली की तरह फेंक देते हैं
अब 5 साल बाद आएंगे, हम भी उन्हें आम बनाएंगे