आभाव
दूर किताबों की दुनिया से
आज यहां हर एक नर – नारी
कवि भाव तो दबी – दबाई
कविता रोवें बेचारी
जितना सरल भाव से लिखा
कविता का परिणाम है
उतनी सघन बना इसको
ना छूने का अंजाम है
कौन यहां कविता पढ़ता है
सभी व्यस्त है काम में
प्रेमचंद्र की लेखन गाथा
धरी है बस एक नाम में
अब तो छापा मार दिया है
हर कहीं टेक्निकल जाल
बंद कवि की लेखन गाथा
और बुक स्टॉल।