आभार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ…. रामपुर नगर….
आभार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ…. रामपुर नगर….
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यह मेरे लिए अत्यंत गौरव का क्षण था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, रामपुर नगर ने अपने प्रतिष्ठित विजयदशमी उत्सव 8 अक्टूबर 2019 के लिए अध्यक्ष के नाते मुझे आमंत्रित किया। संघ के स्वयंसेवकों के मध्य इस उत्सव की एक अपनी विशिष्ट ऐतिहासिक परंपरा है। कारण यह कि संघ की स्थापना दशहरा 1925 ईस्वी को हुई थी । अतः विजयदशमी उत्सव एक प्रकार से संघ का स्थापना दिवस भी है।
आइए रामपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गौरवशाली इतिहास का स्मरण करते हैं । पूज्य पिता जी श्री रामप्रकाश सर्राफ बताते थे कि रामपुर में संघ की स्थापना श्री भाऊराव देवरस ने 1946 की गर्मियों में आकर की थी । रामपुर के पुराने निवासी श्री रामरूप गुप्त जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र रहे थे और वहाँ वह सबसे पहले संघ के संपर्क में आने वाले रामपुर के व्यक्ति थे ।राम रूप जी से पिताजी की बहुत घनिष्ठ मित्रता थी तथा मैं उनको ताऊजी कह कर बुलाता था। रामरूप जी ने रामपुर में संघ का कार्यभार प्रमुखता से श्री बृजराज शरण वकील साहब के अनासक्त हाथों में सौंपा। उस समय के पुराने स्वयंसेवकों की लंबी श्रंखला में कुछ नाम सर्वश्री सीताराम जी भाई साहब, महेंद्र प्रसाद जी गुप्त, भोला नाथ जी गुप्त तथा उनके भाई रामअवतार जी गुप्त , ब्रजपाल सरन जी तथा सर्वोपरि कैलाश चंद्र जी जो बाद में आचार्य बृहस्पति के नाम से संगीत के विद्वान के रूप में विख्यात हुए आदि थे। इनमें से 9 अक्टूबर 1925 को पूज्य पिताजी का जन्म हुआ था तथा उनकी मित्र मंडली के उपरोक्त सदस्य आयु में उनसे दो-तीन साल आगे पीछे ही रहे होंगे । आचार्य बृहस्पति मार्गदर्शक की भूमिका में रहे । नवयुवकों की यह टोली रामपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में राष्ट्रीय विचारधारा को पुष्ट करने का कार्य कर रही थी ।
1946 के आसपास पूज्य पिताजी ने संघ के वृंदावन शिविर में भाग लिया था, जो 1 महीने का था लेकिन उनका प्रवास 15 दिन का ही रह पाया था । एक प्रसंग इलाहाबाद शिविर में भाग लेने का भी है जिसमें उनके साथ सीताराम जी भाई साहब तथा रामअवतार गुप्तजी (श्री केशव गुप्त जी के पिताजी ) भी थे । संघ का एक शिविर जनवरी 1956 में राजघाट में लगा था ,जो चंदौसी के निकट है । इसमें भी पूज्य पिताजी भाग लेने के लिए गए थे तथा बीच में ही श्री सुंदर लाल जी की तबीयत खराब होने के कारण वापस लौट आए थे।
गोरखपुर के बाद सरस्वती शिशु मंदिर श्रृंखला का विस्तार करने का मन रामपुर ने बनाया । रामपुर में मोतीराम जी की धर्मशाला में सरस्वती शिशु मंदिर खोला जाए, इसके संबंध में पूज्य पिताजी ने मोतीराम जी के सुपुत्र लक्ष्मीनारायण जी से बात करके यह स्थान शिशु मंदिर के लिए प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की । लक्ष्मीनारायण जी पूज्य पिताजी के कुनबे के व्यक्ति थे । वंश परंपरा के अनुरूप उदारमना तथा निःस्वार्थ वृत्ति के थे । उनके प्रयासों से उनके स्थान का सर्वोत्तम सदुपयोग उत्तर प्रदेश में दूसरे शिशु मंदिर के स्थापना के कार्य में हुआ।
जब 1956 में श्री सुंदरलाल जी की मृत्यु हुई ,तब उसके 5 दिन बाद अपने हृदय की वेदना अभिव्यक्त करने के लिए पूज्य पिताजी को संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी से बेहतर कोई व्यक्ति नजर नहीं आया । उन्होंने अपनी वेदना एक पत्र में गुरु जी को लिखी और उस वेदना को शांत करने के लिए गुरु जी ने जो उत्तर दिया, वह अपने आप में एक संगठन के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति द्वारा नितांत निचले स्तर पर स्थित कार्यकर्ता के साथ किस प्रकार का आत्मीय , पारिवारिक बल्कि कहना चाहिए कि हृदय की डोर से बँधा हुआ रिश्ता होना चाहिए, यह गुरु जी के पत्र में झलकता है ।
बाद में जब रामपुर में जनसंघ की स्थापना 1951 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने की तो स्वाभाविक रूप से पूज्य पिताजी संघ के साथ साथ जनसंघ में भी समर्पित हो गए ।1962 में रामरूप गुप्त जी के साथ मिलकर श्री शांति शरण जी को चुनाव में खड़ा करने में दोनों ही महानुभावों की प्रमुख भूमिका रही । इस प्रकार 1946 से राष्ट्रीय प्रवृत्तियों को स्थापित करने के लिए संघ के तपस्वी महानुभावों ने जो तप किया, उन सबको प्रणाम करने का अवसर विजयदशमी उत्सव के माध्यम से मिलता है।
1983 में अर्थात 36 वर्ष पूर्व मैंने भी संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी की एक संक्षिप्त जीवनी तैयार की थी। सौभाग्य से यह उस समय सहकारी युग( साप्ताहिक ) में प्रकाशित भी हुई । मेरी योजना उसे 24 पृष्ठ की एक छोटी-सी पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की थी । लेकिन,दूसरी कहानियाँ कविताएं आदि तो पुस्तकाकार प्रकाशित हुईं मगर यह कार्य टलता चला गया। प्रकाशन बहुत बार जब सुनिश्चित समय आता है ,तभी होता है।