आब की करू
सगरे गाम शोर भगेलै आब कहू
भोरूकुबा सँ इजोत भगेलै रहू
छनि मिलिकऽ चलि जेती तखने
केओ नहर पर आबि रहल छथि
हाय रे माय बाप आब की करू
गाछ पात सँ नुकाबए कयसे
मधुर देहपाज रहि गेलैए अयसे
लागे जेना जातिक देहरि जायब
बाबूक इज्जत पाग केना बचाऐब
हाय रे विधाता कि सब भगेलै
हाय रे माय बाप आब की करू
लागै जेना आय धए लैत केओ
इजोत नाहि आब घर आगन मे
कोन किरनियाँ आगन मे आएत
पाप साँच समाजक बंधनसँ आगु
हाय रे विधाता कि सब भगेलै
हाय रे माय बाप आब की करू
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य