आफत में जान
हजूर, बिला वजह जो मुस्कराए जा रहे हो,
आफत में क्यों अपनी जान लाए जा रहे हो,
ये आँखों की शोखीयाँ, वो लबों की लरजिश,
अजाब तो सब हम पर आजमाए जा रहे हो,
बार-बार यूँ देखना आपका हमारी जानिब,
दिल पे मुहब्बत के नश्तर खाए जा रहे हो,
दर्द-आमेज खेल है इश्क का समझ लिजिए,
बेवजह मुसीबत अपने घर बुलाए जा रहे हो,
जिंदगी में एक से एक मसला आता ही रहेगा,
शरारतन आप क्यों उलझनें बढाए जा रहे हो,
क्या खबर सबर-ओ-करार आए कि ना आए,
रातों की नीँद, दिन का चैन गँवाए जा रहे हो,
‘दक्ष’ जब दिल की चली तो किसकी चली है,
इश्क से है खौफ य़ा खुद से घबराए जा रहे हो,
विकास शर्मा ‘दक्ष’
बिला = बिना ; लबों = होंठों ; लरज़िश = कंपन ; जानिब = तरफ ; नश्तर = शल्य क्रिया का उपकरण का वार scalpel ; दर्द-आमेज़ = दर्द देने वाला ; मसला = समस्या ; खौफ =डर