आफताबी नज़र
मिसरा-आप की नजदिकियां क्यूँ दुश्मनों से आजकल।
आफताबी जलती नज़र,करे रोज़ ही ख़ाक़ मुझे,
आप की नजदिकियां क्यूँ हैं,दुश्मनों से आजकल।
धोखा देने की सुनो, फितरत तो न थी आपकी,
कौन है जिसकी हिदायत,पल रही है आजकल।
पास आने से तेरे,ले महकने लगा फिर बागबान
बातें तेरी मिश्री बनकर,घुल रही हैं आजकल।
लब से निकलकर आयतें पहुँची हैं,सीधी आसमां
तेरी ही चाहत और तमन्ना, पल रही हैं आजकल।
वज़ूद इत्र सा बनकर के महकेगा सुन नीलम तिरा
हासिल को तेरे कामयाबी, मचल रही हैं आजकल।
नीलम शर्मा✍️