Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Jul 2021 · 7 min read

आप से तुम तक

आप से तुम तक

निधि और रितिक की शादी धूमधाम से सम्पन्न हुई। निधि हजारों सपनों और अरमानों को संजोए विदा हो कर ससुराल आयी।
घर में मेहमानों की गहमा-गहमी, हँसी-ठिठोली के बीच नई बहू का स्वागत हुआ। सभी लोगों की बधाईयों और दुआओं से वह निहाल हो रही थी।
रात्रि भोजन के बाद उसे उसके कमरे में ले जाया गया, जहाँ ताजे फूलों की खूबसूरत सजावट देखकर वह दंग रह गयी और उन फूलों से आती मादक सुगंध से अजीब-सी सिहरन दौड़ गयी उसके पूरे बदन में… धड़कनें तेज हो गयीं।
ननदें चुहलबाज़ी करती कमरे में छोड़ जा चुकी थीं। वह बेड पर बैठी रितिक का इंतजार कर रही है।
पर, बारह बज गये रितिक का कोई पता नहीं। वह बेड से उतर कर खिड़की के पास आयी और परदे को सरका दी। सामने पूर्ण चाँद निकला है, जिसे वह निहारती हुई ख्यालों में खो जाती है,
‘कितना सुंदर… कितना मनोरम है आज का चाँद। पूनम की इस रात में मेरी जिंदगी में भी चाँदनी भर आयी है।’
तभी किसी के आने की आहट पर वह तेजी से बेड की ओर बढ़ती है।
“घबराने की जरूरत नहीं है, आराम से ।” रितिक की आवाज सुन वह संयत होकर खड़ी रही।
दरवाजे की सिटकनी लगा कर रितिक ने निधि को इशारे से बैठने के लिए कहा, तो वह बेड के एक किनारे बैठ गयी।
“निधि, क्या मैं आपसे कुछ बात कर सकता हूँ ?”
बेड के दूसरे किनारे पर बैठते हुए रितिक ने पूछा।

” जी, आपको जो भी पूछना है, नि:संकोच पूछिए।”

“हमारी शादी, हमारे माता-पिता के पसंद से हुई है। हम एक-दूसरे को उतना ही जानते हैं जितना उन्होंने बताया।
इस आधार पर मैं कह सकता हूँ कि आप एक पढ़ी-लिखी समझदार लड़की हैं। मेरी बातों को आप समझ सकेंगी।”

“जी, समझ तो सकती हूँ, पर आप कहना क्या चाहते हैं आप ?”

“जैसा कि आप जानती हैं, मेरी माँ कैंसर की फोर्थ स्टेज की पेशेन्ट है। वह चंद दिनों की मेहमान हैं। आप मेरी माँ की पसंद हैं, तो ऐसे में मैं माँ को मना नहीं कर पाया।”

“ओह ! इसका मतलब इस शादी में आपकी मर्जी नहीं है ?”

“आप बुरा मत मानिए। मुझे समझने की कोशिश कीजिए। मैं किसी से प्यार करता हूँ और वो भी करती है। हम जल्दी ही घरवालों को बताने वाले भी थे। परन्तु अचानक से माँ की तबियत बिगड़ने की खबर मिली तो मैं दिल्ली से भाग कर घर आया। यहाँ माँ की इलाज चलने के साथ ही साथ मुझ पर शादी के दबाव पड़ने लगे, एकलौता जो हूँ। और माँ ने तो झट से आपको पसंद भी कर लिया। माँ की खुशी मेरे लिए सर्वोपरि है, तो मना भी कैसे करता ?”

इतना सुन निधि के सारे अरमान गहन अंधेरे में खो गये।
“हम्म… ! तो आगे क्या फैसला लिया है आपने मेरी जिंदगी का ?” अपने अंदर उमड़ते हुए दर्द के सैलाब रोकते हुए निधि पूछी।

“बस, कुछ दिन आप सबके सामने इस रिश्ते को निभा लीजिए… कम से कम जब तक माँ है।”

“ओह्… मतलब रिश्ते का सिर्फ दिखावा करना है।
कितना आसान है ना आप लोगों के लिए… रिश्ते बनाना और तोड़ना। क्या इतना आसान होता है एक लड़की के लिए नये रिश्ते बनाना ?” तड़प उठी निधि।

“मैं जानता हूँ, आसान नहीं है ये सब, पर करना पड़ेगा। आपका दर्द समझ सकता हूँ…। मैं हरसंभव आपकी मदद करूँगा।”
निधि बिना कुछ बोले सो जाने का दिखावा करती है।
पूनम की इस रात में निधि के मन को अमावस के अंधेरे ने घेर लिया। उसने निश्चय किया कि वह कल ही वापस चली जायेगी।
अगली सुबह सभी मेहमानों की विदाई होने लगी।
“बहू, अब इस घर की बागडोर तुम्हारे ही हाथों में है,अच्छे से सम्भालना। सासू माँ को समय से दवाई देते रहना और तुम्हारे ससुर जी को मीठा मना है, पर मीठा खाना बहुत पसंद है… ध्यान रखना।” बुआ सास जाते-जाते जिम्मेदारी दे गयीं।
‘अच्छा, कुछ दिन रुक जाती हूँ। पग फेरे के लिए जाऊँगी तो वापस नहीं आऊंगी।’ सोचकर वह वार्डरोब में अपने कपड़े लगाने लगी।
पाँचवें दिन उसके पापा लेने आये और वह मायके आ गयी। वह सबके सामने तो हँसती-मुस्कुराती, पर मन में उदासी छायी रहती। किसी को बता भी तो नहीं सकती थी। कैसे सहन करते उसके माँ-पापा इस सदमे को।
दूसरे ही दिन सुबह-सुबह सासू माँ की फोन आ गयी,
“हैलो ! माँ जी प्रणाम। आप ठीक हैं ना और पापाजी कैसे हैं?”
“हम सब ठीक ही हैं बेटा। पापाजी को तुम्हारे हाथ की ही चाय पसंद है अब।”
सुनकर निधि के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।
“अच्छा, कल रितिक जा रहा है तुम्हें लेने। तुम तैयारी कर लेना पहले ही और कल ही वापस आ जाना बेटा… घर सूना-सूना सा लग रहा है।”

“जी, माँ जी। मैं आ जाऊँगी, आप चिंता न करें।”
निधि चाह कर भी मना ही नहीं कर पायी। वह अजीब-सी उलझन में पड़ गयी।
अगले दिन रितिक आया और वह उसके साथ ससुराल चली आयी।
रितिक ने अब जॉब इसी शहर में ढूंढ लिया।
“मैं दिनभर तो नहीं रहूँगा। काम पर भी जाना जरूरी है, वरना आर्थिक तंगी हो जायेगी। आप मेरे पीछे माँ का ख्याल रखिएगा। ऑफिस से आने के बाद मैं खुद…।” रितिक बात पूरी करता इससे पहले ही निधि ने टोका,
“कहने की जरूरत नहीं है। मुझे पता है मुझे क्या करना है।” कहते हुए वह किचन की तरफ बढ़ गयी। रितिक भी ऑफिस चला गया।
निधि पूरे तन-मन से सास-ससुर की सेवा में लग गयी। एक बहू की सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाते-निभाते उसे पता भी नहीं चला वह कब एक पत्नी की भी जिम्मेदारी निभाने लगी। मतलब रितिक की हर छोटी-बड़ी जरूरतों का ख्याल रखना, उसे कब क्या चाहिए…क्या नहीं, उसके खाने का टेस्ट, पसंदीदा कपड़े, रंग… वगैरह-वगैरह। और रितिक को भी कहाँ पता चल पाया वह कब निधि पर निर्भर हो गया।
निधि की देखभाल और दवाईयों के प्रभाव से सासू माँ की तबियत साल भर तो ठीक-ठाक चली।
पर अब उसकी हालत बिगड़ने लगी। कमजोरी बढ़ने लगी, पेट में दर्द रहने लगा और कभी-कभी तो उल्टियाँ भी आने लगीं। दवाईयाँ बेअसर होने लगीं।
रितिक ने ऑफिस से छुट्टी ले लिया। रितिक के पापा, निधि और रितिक तीनों दिन-रात माँ के आस-पास ही रहते। एक अनमना-सा माहौल बन गया घर में। भूख तो जैसे सबकी मर ही गई थी। ऐसे में निधि दोनों बाप-बेटे को समझाती, उसका ख्याल रखती।
आखिर एक दिन वह चल बसीं। नाते-रिश्तेदारों की आवाजाही शुरू हो गई। रितिक की भाग-दौड़ भी बढ़ गयी। वह अकेला था पर निधि ने खूब साथ निभाया उसका।
सासु माँ के दाह-संस्कार से लेकर श्राद्ध-संपीडन और मेहमानों की विदाई तक उसने अपनी सारी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभायी।
जो भी आये, तारीफ़ें करते हुए गये।
सबके जाने के बाद रितिक अचेत सा बिस्तर पर पड़ गया। मारे थकान के बदन टूट रहा था और तेज बुखार भी आ गया।
पर निधि इससे अनजान घर में बिखरे अस्त-व्यस्त सामान को समेटती हुई सोच रही थी,
‘सारी चीजें नियत जगह पर रख देती हूँ… ये तो हैं ही लापरवाह। कल तो मुझे भी जाना ही है इस घर से हमेशा के लिए। पता नहीं वो कैसी है? कैसे सम्भालेगी घर को…।
कैसी भी रहे मुझे उससे क्या… मेरा घर तो है नहीं। मैं क्यों सोच रही हूँ।’
“बहू, मैंने चश्मा कहाँ रख दिया…जरा देखना तो।”
ससुरजी की आवाज सुन वह ख्यालों से बाहर आयी।
“जी, पापाजी ! अभी आयी।”

रात में निधि ने रितिक से डिनर के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया, “भूख नहीं है। पापा और आप खा लीजिए।”
रात में ही निधि पैकिंग करने लगी, ताकि कुछ रह जाये तो सुबह तक याद आ जाये।
रितिक कब का सो चुका था। निधि भी पैकिंग करने के बाद सो गयी।
अगली सुबह वह जल्दी ही जग गयी। बचे-खुचे काम निपटाकर वह चाय लेकर कमरे में आयी।
” अब तक सोये हैं, ऑफिस नहीं जाना है क्या? आपकी चाय है, उठकर पी लीजिए।”
“ऊँह्….हम्म् । ठीक है रख दीजिए, मैं पी लूँगा।”

लंच तैयार कर निधि स्नान पूजा करते हुए कमरे में आयी तैयार होने के लिए।
” सोये ही हैं…लगता है आज ऑफिस नहीं जाएँगे। अच्छा है… थकान होगी, रेस्ट मिल जाएगा।” बड़बड़ाती हुई वह तैयार होने लगी।
कुछ देर बाद,
“सुनिए, अब उठ जाइये… कुछ बात करनी है मुझे।” बेड के पास आकर निधि बोली।

“हाँ, कहिए ना।” कहते हुए वह उठकर बैठ गया।
“अरे ! कहीं जा रही हैं क्या ?” निधि को तैयार देखकर वह चौंका।
“हाँ…।”
“पर कहाँ ? पहले बतातीं तो मैं भी साथ में आता।”
” मेरी सारी जिम्मेदारी पूरी हो गयी… आपका और मेरा साथ यहीं तक था। अपने घर जा रही हूँ मैं और आप भी उसे ले आईये। पापाजी से बात कर ली है मैंने, वो मान जाएँगे…।” निधि अपने आँसू को जबरदस्ती रोकते हुए बोली और जाने के लिए पीछे मुड़ी।
पर ये क्या…? रितिक ने लपक कर उसका हाथ थाम लिया और अपनी ओर खींच लिया। झटके से निधि रितिक के ऊपर जा गिरी और रितिक ने उसे बाहों में जकड़ लिया।
“अरे! ये क्या? आपको तो बहुत तेज बुखार है… आपने बताया भी नहीं।”
“मैं देख रहा हूँ, कल से ही तुम जाने की तैयारी में हो तो मैं क्यों बताता…?”
“तुम ! आपने मुझे तुम कहा…? मैं… ‘आप’ से तुम कब बन गई ?” एक खुशी छलक पड़ी निधि की आवाज में।
“जब से तुम मेरे दिल में रहने लगी। अब कभी छोड़कर जाने की बात मत करना, मैं नहीं रह पाऊँगा।” कहते हुए आँसू की बूंदें टपकीं उसकी आँखों से और लुढ़क कर निधि के आँसुओं में मिलती गयीं।

स्वरचित एवं मौलिक
रानी सिंह, पूर्णियाँ, बिहार

3 Likes · 4 Comments · 697 Views

You may also like these posts

उसके पास से उठकर किसी कोने में जा बैठा,
उसके पास से उठकर किसी कोने में जा बैठा,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ख्वाहिशों के बैंलेस को
ख्वाहिशों के बैंलेस को
Sunil Maheshwari
।।
।।
*प्रणय*
*अपना सरगम दे जाना*
*अपना सरगम दे जाना*
Krishna Manshi
सच-झुठ
सच-झुठ
Mansi Kadam
व्यथा
व्यथा
Laxmi Narayan Gupta
जिंदगी है कोई मांगा हुआ अखबार नहीं ।
जिंदगी है कोई मांगा हुआ अखबार नहीं ।
Phool gufran
*चुनावी कुंडलिया*
*चुनावी कुंडलिया*
Ravi Prakash
ख़ूबसूरती और सादगी के बीच का यह अंतर गहराई और दृष्टि में छिप
ख़ूबसूरती और सादगी के बीच का यह अंतर गहराई और दृष्टि में छिप
पूर्वार्थ
एक जिद्दी जुनूनी और स्वाभिमानी पुरुष को कभी ईनाम और सम्मान क
एक जिद्दी जुनूनी और स्वाभिमानी पुरुष को कभी ईनाम और सम्मान क
Rj Anand Prajapati
सम्मान
सम्मान
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"गुरु पूर्णिमा" की हार्दिक शुभकामनाएं....
दीपक श्रीवास्तव
बचा  सको तो  बचा  लो किरदारे..इंसा को....
बचा सको तो बचा लो किरदारे..इंसा को....
shabina. Naaz
गज़ल
गज़ल
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
देश- विरोधी तत्व
देश- विरोधी तत्व
लक्ष्मी सिंह
माफ करना मैडम हमें,
माफ करना मैडम हमें,
Dr. Man Mohan Krishna
4535.*पूर्णिका*
4535.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हु
एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हु
Rituraj shivem verma
जिंदगी हवाई जहाज
जिंदगी हवाई जहाज
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
"आहट "
Dr. Kishan tandon kranti
जिस परिंदे के पंखों में मजबूती होती है।
जिस परिंदे के पंखों में मजबूती होती है।
Dr.sima
बाजार  में हिला नहीं
बाजार में हिला नहीं
AJAY AMITABH SUMAN
अरदास
अरदास
Mangu singh
कर्म ही पूजा है ।
कर्म ही पूजा है ।
Diwakar Mahto
मां!क्या यह जीवन है?
मां!क्या यह जीवन है?
Mohan Pandey
बेटी लक्ष्मी रूप है
बेटी लक्ष्मी रूप है
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
दर्द आँखों में आँसू  बनने  की बजाय
दर्द आँखों में आँसू बनने की बजाय
शिव प्रताप लोधी
नजरों से गिर जाते है,
नजरों से गिर जाते है,
Yogendra Chaturwedi
कहाँ गए वो दिन
कहाँ गए वो दिन
Meera Thakur
भाई घर की शान है, बहनों का अभिमान।
भाई घर की शान है, बहनों का अभिमान।
डॉ.सीमा अग्रवाल
Loading...