आप यूं ही खराब कहते हैं
बहर्-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख्बून
ग़ज़ल
आप यूं ही ख़राब कहते हैं।।
लोग मुझको नवाब कहते हैं।।
ढूढ़ते हो जवाब क्यों मेरा।
सब मुझे लाजवाब कहते हैं।।
बेरुख़ी ये अजीब चुभती है।
क्या इसी को अज़ाब कहते हैं।।
हम ज़फा का सिला वफ़ा देगें
हम इसी को हिसाब कहते हैं।।
नींद आंखों से छीन लेते जो।
बस उन्हीं को ख़्वाब कहते हैं।।
कह दिया था ” अनीश ” जो तुमने।
नाम को अब खिताब कहते हैं।।
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अज़ाब=सजा।ज़फा=अन्याय।