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19 Oct 2021 · 1 min read

आप और हम

आप प्रभु हैं दास हूँ मैं।
आप खुश उदास हूँ मैं।
आप दाता दरिद्र हूँ मैं।
आप भरे-भरे छिद्र हूँ मैं।
आप रौद्र भयभीत हूँ मैं।
आप क्रोध विनीत हूँ मैं।
आप हास रुदन हूँ मैं।
आप आत्मा बदन हूँ मैं।
आप स्वर्ग नरक हूँ मैं।
आपसे पूरा फरक हूँ मैं।
आप महल टूटी झोपड़ी हूँ मैं।
आप ज्ञानी खाली-खोपड़ी हूँ मैं।
आप स्निग्ध रूखा हूँ मैं।
आप रसीले सूखा हूँ मैं।
आप कुबेर के सखा।
मुझमें क्या रखा !
आप विष्णु के भक्त।
छल करने में मस्त।
तुलसी हो या असुर।
या कि हो भस्मासुर।
आप तोड़ते विश्वास।
अपने ही लिखा मेरा विनाश।
जानते हैं आप कौन?
बताता हूँ रहिए मौन।
अवसर दिया तो साम,दाम,दंड,भेद।
जीत लेंगे सर्वस्व,बहाये बिना श्वेद।
आप हैं शहर सी फितरत वाले।
गिद्ध की नीयत वाले।
आप नृप हैं कर वसूली वाले।
झूठ को सच में कबूली वाले।
आप महल मैं उसका ईंट-गारा।
सारी उपलब्धि आपकी,मैं नकारा।
मेरे रक्त से होती आपकी प्राण-प्रतिष्ठा।
आप नष्ट करते हैं मेरी सारी चेष्टा।
अब मैं स्वयं को जानता हूँ।
तुम्हें शोषण का पोषक मानता हूँ।
———————————–

Language: Hindi
149 Views
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