आ,प्रेम का हुनर सिखाऊँ तुझे।
आ
नफरत के दौर में
प्रेम का हुनर सिखाऊं तुझे।
आ
समंदर के मौजों की
रवानी दिखाऊं तुझे।
आ
बैठ मेरे करीब जरा
और चाँद का दीदार कर।
मेरी
मुफलिसी का सबब न बनो तुम
ऐ मेरे हमराही।
अब
यूँ कब तलक
मुन्तज़िर बनता फिरूँ मैं।
बस
अब इनती इल्तेज़ा है ऐ मेरे खुदा
तू रूह में उतर जा सांसों की तरह।