आपातकाल
लोकतंत्र से लोक हटा था
एक काली रात में।
आपातकाल का स्वाद चखा था
मेरे शांत भारत देश ने।
एक लोक सेविका बन बैठी थी महारानी
और करने लगी थी अपनी मनमानी।
लोकतंत्र के चारों स्तंभों को
खोखला उसनें कर डाला।
संविधान को भी उसनें
मात्र एक पुस्तक बना डाला।
जिस हाथ ने उंगली उठाई
जिस आंख ने आंख दिखाई
महारानी ने सबको जेलों में भर डाला।
भूख-प्यास से तड़पते रहे सब
झेलते रहे उसकी तानाशाही।
लोकतंत्र की आन पर तब
चोट बहुत गहरी आई ।
दुआ करो आज सभी
वो दिन इस देश मे फिर न आए कभी।
– श्रीयांश गुप्ता