आपबीती
सोचता हूँ आग की तरहां खबर फ़ैलाई जाए,
क्यूं ना अपनी आपबीती सबको बताई जाए।
बार-बार मुस्करा के जिसने मेरा क़त्ल किया,
क्यूं ना उस हसीना पे एक FIR लगाई जाए।
किस थाने में दर्ज कराऊं मामला दिल का है,
क्यूं ना उसके मयखाने से हाला चुराई जाए।
जब क़ातिल का दर्जा उसे मन नहीं देता तो,
क्यूं ना उसकी हर अदा दिल में बसाई जाए।
चुपचाप बैठीं सिरहाने यादें नींदें चुराने लगी,
क्यूं ना अंधेरे में इनसे बातें खूब बनाई जाए।
कुलबुलाहटों से चद्दर पे बेशुमार पड़ी सलवटें,
क्यूं ना अपनी खाट से चद्दर ही हटाई जाए।
ये सपनों की मुलाकातें रातें कटने नहीं देती,
क्यूं ना बोझिल आँखें अकेले में बहाई जाए।
हर लम्हा हर वाक्या जगजाहिर हो ठीक नहीं,
क्यूं ना खास सी बातें ज़माने से छुपाई जाए।
ये नाज ओ’ नखरे ओ’ अदाएं तुझे भाने लगे “अनिल”,
क्यूं ना इनके लिए प्यार से राहें सजाई जाए ।
©✍?09/02/2022
अनिल कुमार “खोखर”
anilk1604@gmail.com