आपदा को अवसर में बदलने की कला!
आपदा को अवसर में बदलने की कला में,
महारथ हासिल कर ली है अब मुनाफा बाजों ने,
बीमार पर है आपदा, परिवार को सुविधा का अभाव,
कालाबाजारी में मिलती है,दवा, और आक्सीजन बे भाव!
लगे हैं मुनाफा खोर मुनाफा कमाने में,
औने पौने दामों की जगह हजारों लाखों बनाने में,
आक्सीजन का तो हाल-फिलहाल बुरा हाल है,
जरुरतों मंदों में इसके लिए मचा हुआ कोहराम है!
अवसर वादियों ने इसमें भी अवसर तलाश लिया,
दवा और इंनजक्सन को मुनाफे का बाजार बना दिया,
आक्सीजन के सिलेंडर को भी कालाबाजारी में ला दिया,
ये सभी आपदा को अवसर ही तो बना गये हैं,
मुश्किल में हैं जो, वह आज आंशू बहा रहे हैं!
अब तो वैक्सीन के निर्माताओं ने भी यह सलाह धार ली है,
डेढ़ सौ की वैक्सीन की कीमत दो गुनी से ज्यादा करा दी है,
नीजि लगाने वालों पर कई–कई गुना बढ़ा दी गई है,
राज्य सरकारों को भी बढ़ी हुई कीमतों पर मिलेगी,
केन्द्र को पहले की तरह मिलती रहेगी!
विदेशों को यह जब जब निर्यात होगी,
उन्हें हमसे भी कम दामों पर मिलेगी,
पड़ोसियों से मित्र धर्म का निर्वाह जो करना है,
वहां देने पर चाहे घाटा भी सहना है!
मुनाफा तो हम देश वासियों से ही कमाएंगे,
लोकल से वोकल का अभियान चलाएंगे,
आत्मनिर्भर भी तो हमें बनना है,
इसी के लिए यह सब कुछ करना है!!
शायद यही मंतव्य रहा हो, हमें बताने का,
रोजगार देने का,
लोकल से वोकल होने का,
आत्मनिर्भर बनने का,
विकास शील से विकसित राष्ट्र होने का,
फाइव ट्रिलियन की अर्थ व्यवस्था बनने का,
और विश्व गुरु होने का मार्ग प्रसस्त करने का!
हम ही नादां थे जो मंतव्य न समझ पाए,
चलो आओ ये गीत गुनगुनाएं,
गैरों पे करम, अपनों से सीतम,
ऐ जाने वफ़ा,तू ये जूल्म ना कर,
रहने दें अभी थोड़ा सा भरम!!