पेड़
मेरे घर के चारो तरफ,
पेड़ आसमान लगे नापने,
जैसे मानो कोई रेस लगी हो,
जंगल में ना होने की ठेस लगी हो !
धूप आंगन से बिछड़ी जाती है,
इतने लंबे हैं ये सारे पेड़,
मधुमक्खियों का मीठा घर बनाकर,
थोड़े दूर, मगर जीवनसाथी है ये सब ।
इनकी ऊंचाई को कम करना,
मधुमक्खियों को घर से बेघर करना,
हां जी, बिलकुल क्रूर था यह करना,
पर क्या जरुरी था यह सब करना !
चलो इस क्रूरता में थोड़ी कुछ अच्छाई ढूंढते हैं
लकड़हारे के चूल्हे पे पकती कुछ रोटी सोचता हैं,
धूप को बिछड़े आंगन से फिर से जोड़ते हैं,
चलो मधुमक्खी-पेड़ की नवीन कहानी ढूंढते हैं ।
©अभिषेक पाण्डेय अभि