आपके एहसान से
वर्षों पहले मैं मिली थी नेकदिल इंसान से।
उसने मुझको मैंने उसको चाहा था दिल जान से।।
हैं निशानी और भी वैसे मेरे महबूब की।
आजकल वो होंठ हरदम लाल रखता पान से।।
अपने पैमानों पे गढ़ते धर्म की परिभाषा जो।
रखिये थोड़ी सावधानी कलयुगी भगवान से।।
वो नहीं वाकिफ़ पसीने की महक से दोस्तों।
पूछते हो आप कीमत रोटी की धनवान से।।
चार पैसे अब कमाने का हुनर कुछ सीख ले।
घर नहीं चलता है साहिब आजकल अनुदान से।।
कुर्सी दौलत पद प्रतिष्ठा चाहिए क्या बोलिए।
मिल रहा है अब तो सबकुछ थोड़ी सी पहचान से।।
रौंदते हैं संस्कारों को चलन के नाम पर।
झाँकता रहता बदन सब आधुनिक परिधान से।।
आपकी गलती का दुष्परिणाम आखिर देखिए।
चोर मरवाये ही क्यों थे आपने महमान से।।
साँसे बोझिल लग रहीं अब जिंदगी दुश्वार है।
ज्योति इतनी दब चुकी है आपके अहसान से।।
✍🏻श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव