आपके आ जाने से
तब त़लक भटकता रहा सऱाबों में ।
जब त़लक तुम नहीं मिले रहे अपने हिजाबों मे।
अंधेरे में ग़ुमशुदा था अब तक।
एक पुरऩूर ए़हसास लिए तुम मुझे नही मिले जब तक।
जज्ब़ किए कुछ यादों के काफ़िले मैं बढ़ता रहा अन्जानी राहों पर मंज़िलों से बेख़बर।
तब तुमने थामा मेरा हाथ बनकर मेरे हमसफ़र।
और दी मुझे नज़र।
ज़िदगी जो अब तक लगती थी दुश़वार।
आपके आने से बन गयी खुश़गवार।
जो साऩेहा सा था वो गुज़र गया।
रफ्त़ा रफ्त़ाआने लगे मसर्रत के दिन।