आन बनल छै
हमरे मोन मंदिर मे
जे केओ छल
कतए दुर गेलई
पाछु पाछु चलि केँ
कुसुम पुष्प लयकें
हे कान्हा बाटे मे
सभ ओर तकै छी
आ तोँ
परदेश रहै छऽ
बिनु तोहर हम्मे
जी भर हाँसि
की कानि
बाजऽ तोँ बाजऽ
आई काल्हि तोँ
कहा रहै छऽ
देखोॅ मथुरा मे
सभ्भ ताकि रहल छै
राधा रानी संग तोहर
उ मधुर मिलन होई
बाँसुरी केर सुन्नर
सब तान छीड़ेय
हाय रे विधाता
की की लिखलथि
बैरी अपन काहे
आन बनल छै
© श्रीहर्ष आचार्य