— आना जाना —
किसी का आना , किसी का जाना
किसी का सेहरा संजना
किसी का श्मशान को चलना
न जाने कितने रंग हैं दुनिया के
साँसों के बलबूते चलती जाए
कोई यहाँ आया तो कोई चला जाए
कैसी लीला रचा दी भगवान्
न जाने यह ही समझ में न आये
क्यूं बनाया दुनिया को तूने
क्यूं रचा डाला इतना बड़ा संसार
क्यूं बनाये मोह के धागे
जिस को तोड़ के चल दे उस पार
फिर से लेने को नया जन्म
फिर से नए रूप में आने को तयार
न जाने किस देश में भेजोगे भगवन
यह आत्मा का कब होगा बेडा पार
अजीत कुमार तलवार
मेरठ