“आनंद ” की खोज में आदमी
“आनंद” की महकती मीठी दरिया में सुधबुध खोकर बहते चले गए ,
जाना था भवसागर पार पर जीवन के अंतिम सच के करीब पहुँच गए I
खुशबूदार हवा के झोकों में जीवन के आनंद को खोजते गये ,
ओंस की बूंदों में अपनी प्यास बुझाने का एक रास्ता ढूढ़ते रहे ,
रंगीन कागज़ के टुकड़ो के लिए विश्वास का धागा तोड़ते गए ,
तन के आनंद के खातिर जिन्दा लाश की मिसाल बनते गए I
“आनंद” की महकती मीठी दरिया में सुधबुध खोकर बहते चले गए ,
जाना था भवसागर पार पर जीवन के अंतिम सच के करीब पहुँच गए I
मिलावट के जहर से अपना वृहद साम्राज स्थापित करते चले गए ,
इंसानियत को दागदार कर समाज में नफरत का पौधा रोपते गए ,
फूलों के नस्लों को बर्बाद करके अपने सपने का किला बुनते गए ,
जज्बातों से खेलकर “जग के मालिक” के नाम को भी बेचते गए I
“आनंद” की महकती मीठी दरिया में सुधबुध खोकर बहते चले गए ,
जाना था भवसागर पार पर जीवन के अंतिम सच के करीब पहुँच गए I
भूख से तड़पते बच्चे को रोटी देने का आनंद भी देखा हमने ,
बहन – बेटी की आबरू को बचाने का आनंद भी देखा हमने ,
गरीब-मजलूम को सही राह दिखाने का भी आनंद देखा हमने ,
आस्था के लुटेरों से बन्दे को बचाने का आनंद भी देखा हमने I
“आनंद” की महकती मीठी दरिया में सुधबुध खोकर बहते चले गए ,
जाना था भवसागर पार पर जीवन के अंतिम सच के करीब पहुँच गए I
कर ले कितने भी जतन “ मालिक ” को अपने जीवन का लेखा-जोखा देना ही पड़ेगा ,
क्या कमाया तूने ? क्या गवायाँ तूने ? छणभंगुर जीवन का पन्ना खोलना ही पड़ेगा ,
कितना जुल्म दिया ? कितना जुल्म सहा तूने ? न्याय के मसीहा को बताना ही पड़ेगा ,
अपने “आनंद ” के लिए कितने दिल तोड़े ? कितने दिल जोड़े ? सबकुछ बताना पड़ेगा,
“राज” ओढ़ ले “मालिक की चुनरिया ” फिर भी तुझको अपना हिसाब तो देना ही पड़ेगा I
“आनंद” की महकती मीठी दरिया में सुधबुध खोकर बहते चले गए ,
जाना था भवसागर पार पर जीवन के अंतिम सच के करीब पहुँच गए I
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देशराज “राज”