आनंद अपरंपार मिला
पूरब में जब उदय हुआ,
मांँ-बाबा का लाड़ मिला,
दादी मांँ का दुलार मिला,
भाई-बहन का प्यार मिला,
बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद औ
बन्धु-बांधव का साथ मिला।
शिक्षकगण का सर पर हाथ
फिर ऊंँचा आकाश मिला,
चकाचौंध की दुनियांँ में,
हवाई किला आवास मिला,
सुख-सागर की तलाश में,
कंटकाकीर्ण सरताज मिला।
अग्रसर हूंँ जीवन-पथ पर,
रोड़ा बारम्बार मिला,
आत्मसंतुष्ट हूंँ निज कर्म से,
प्रश्नों का बौछार मिला,
मूक बना कर्त्तव्यबोधवश,
आशंका का गुबार मिला।
अब पश्चिम की ओर मुखातिब,
आत्मज्ञान अपार मिला,
खेतों और खलिहानों में,
गौओं को नहलाने में,
बछड़ों को दुग्ध पिलाने में,
आनंद अपरम्पार मिला।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)