आनंदानुभूति
आनंदानुभूतियां
तन मेरा झूमे नाचे गाए
मन मेरा हर्षित हो आए
भौरे फूलों पर मंडराएं
कलियां भी मुस्कुराए
नयनन को भाए
प्रकृति की अदाएं
सूरजमुखी खिल आए
जिधर सूरज उधर जाए
दुनिया है क्या बनाए
सुख ,दुख,मोह ,माया
सब इसमें है समाए
अंधेरे में चांद
नजर आए।
हर्षित हो उठा मन
नाच उठा तन- मन
सुर लय ताल लगे
अपनापन,
भाव विभोर हुआ जीवन।
अलंकृत हुआ जीवन
झंकृत हुआ जीवन
रसिक हुआ जीवन
संस्कृत हुआ जीवन।
रचनाकार
संतोष कुमार मिरी
शिक्षक दुर्गया
तन मेरा झूमे नाचे गाए
मन मेरा हर्षित हो आए
भौरे फूलों पर मंडराएं
कलियां भी मुस्कुराए
नयनन को भाए
प्रकृति की अदाएं
सूरजमुखी खिल आए
जिधर सूरज उधर जाए
दुनिया है क्या बनाए
सुख ,दुख,मोह ,माया
सब इसमें है समाए
अंधेरे में चांद
नजर आए।
हर्षित हो उठा मन
नाच उठा तन- मन
सुर लय ताल लगे
अपनापन,
भाव विभोर हुआ जीवन।
अलंकृत हुआ जीवन
झंकृत हुआ जीवन
रसिक हुआ जीवन
संस्कृत हुआ जीवन।
रचनाकार
संतोष कुमार मिरी
शिक्षक दुर्ग