*आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा, रामपुर (उत्तर प्रदेश
आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) का इतिहास
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समीक्षक: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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वर्ष 2024 में एक पुस्तक काव्यधारा के स्तंभ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। 118 पृष्ठ की पुस्तक में काव्यधारा के तीन संस्थापकों दिग्गज मुरादाबादी, सुरेश अधीर और जितेंद्र कमल आनंद का परिचय दिया गया है। उनकी रचनाएं तथा काव्यधारा की स्थापना किस प्रकार हुई, इसका उल्लेख भी मिलता है।
पुस्तक के अनुसार प्रकाश चंद्र सक्सेना दिग्गज मुरादाबादी का जन्म 5 जनवरी 1930 को जिला बुलंदशहर (अनूपशहर तहसील) में हुआ था। आपकी मृत्यु 21 जुलाई 2009 को हुई। आकाशवाणी रामपुर से आपकी अनेक रचनाएं प्रसारित हुई। बालकवि के रूप में ख्याति प्राप्त की। हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में विशाल साहित्य सृजन किया। प्रारंभ में उर्दू में लेखन कार्य रहा। उर्दू में ही एम.ए. किया।
जितेंद्र कमल आनंद (मूल नाम जितेंद्र बहादुर सक्सेना) का जन्म 5 अगस्त 1951 को बरेली में हुआ। आकाशवाणी रामपुर से रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं।
सुरेश चंद्र सक्सेना (सुरेश अधीर) का जन्म 2 जून 1943 को हुआ। आकाशवाणी रामपुर से कविताओं का प्रसारण होता रहता है। रामकृष्ण चरित्रावली सहित कई पुस्तकें 1994 से अब तक प्रकाशित हुई हैं।
पुस्तक से पता चलता है कि काव्यधारा की स्थापना गंगा जयंती सन 1994 ई को हुई थी। हुआ यह कि जितेंद्र कमल आनंद तथा सुरेश अधीर में निकटता स्थापित हुई। जितेंद्र कमल आनंद बाद में विद्या मंदिर इंटर कॉलेज रामपुर में प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत हुए । सुरेश अधीर सनातन धर्म इंटर कॉलेज में शिक्षक थे। दिग्गज मुरादाबादी राजकीय वाकर हायर सेकेंडरी स्कूल, रामपुर में अध्यापक थे। विद्यालय के कार्यों के सिलसिले में सुरेश अधीर और जितेंद्र कमल आनंद का मेल-जोल बढ़ा । साहित्यिक रुचि ने इस मेल को प्रगाढ़ किया।
एक दिन जितेंद्र जी ने एक काव्य संस्था को दिग्गज मुरादाबादी के संरक्षण में बनाए जाने का प्रस्ताव सुरेश अधीर के सामने रखा। बस फिर क्या था, दोनों जने मिलकर मुरादाबाद में दिग्गज मुरादाबादी के घर पर पहुंच गए। दिग्गज मुरादाबादी ने संस्था का नामकरण काव्यधारा रखा। इस तरह काव्य गोष्ठियों तथा साहित्यिक आयोजनों का सिलसिला 1994 से शुरू हो गया।
किसी भी साहित्यिक संस्था को गठित करना अपेक्षाकृत सरल होता है, लेकिन तीन दशक तक उसे निरंतर प्रगति की ऊंचाइयों तक ले जाना अपने आप में एक टेढ़ी खीर होता है। इसका श्रेय सुरेश अधीर के शब्दों में जितेंद्र कमल आनंद को ही जाता है।
संस्था के प्रथम दिवस के कार्यक्रम से 1994 से डॉ प्रेमवती उपाध्याय जुड़ी रही हैं । पुस्तक में उसके चित्र भी दिए गए हैं तथा डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय के संपादन में ही यह पुस्तक प्रकाशित भी हुई है। काव्यधारा के स्तंभ पुस्तक से रामपुर में एक महत्वपूर्ण साहित्यिक संस्था के इतिहास, उसकी स्थापना-प्रवृत्ति तथा संस्थापकों के संबंध में प्रमाणिकता से प्रकाश पड़ता है। तीनों संस्थापकों की कविताओं का महत्वपूर्ण अंश पुस्तक में शामिल किया गया है। कुल मिलाकर यह पुस्तक रामपुर में कविता के इतिहास का मील का पत्थर कही जाने वाली काव्यधारा के स्तंभों के बारे में अच्छा प्रकाश डालती है।