आधुनिक राजनीति
व्यक्ति के लहू नस नस मे,
अहंकार के बस में,
आधुनिक राजनीति,
विकास का गाथा लिए।
वेबस वक्त में,
द्वेष और कलह में,बन गयी हैं खास ।
आज का व्यक्तित्व का आदत , अंदाज है।
विभिषिका ( भयावह) बन तोड़ रहा है समाज ।
मानवता का चीत्कार है।
नीति सिर्फ विचार है,
कर्मों में अन्याय है ।
रचने चला कलुषित जीवन ।
जनता हो या नेता ,ये आम है ।
आधुनिकता के अर्पण में,
राजनीति के समर्पण में,.
अर्जित करों ।
समय आ गया है, पुनर्सृजित करो ।
अब नवनिर्मित करो
_ डाॅ. सीमा कुमारी ,बिहार (भागलपुर ) ये दिनांक 18-3-019 की स्वरचित कविता है , जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं