कविता
“आधुनिक युग में परिवर्तनों का राज है,
खंडित भारत पर हो रहा नाज़ है,
दवाइयों से महँगे इस देश में भभूत हैं,
युवा पीढ़ी ज़्यादातर नशे में ही धुत्त है,
दूध से ज्यादा आज महंगी शराब है,
मर्यादा तो रही नही मुहँ पर जवाब है,
सभ्यता संस्कारों के बखिए उधड़ गये,
दुरियां बढ़ी सब रिश्ते बिगड़ गये,
धाराए अनेकों है, सख़्त कानून हैं,
दिन दहाड़े सड़कों पर हो रहे खून हैं,
आशिक,आशिक़ी का जुनूं यूँ दिखा रहें,
महबूबा ना बनी तो तेज़ाब से जला रहे,
बच्चे व्यस्त हो गये मोबाइल फोन में,
लोरियां भी सुनते है अब कॉलर ट्यून में,
बेरोज़गारी नागरिक को इतना सता रही,
पढ़े लिखे फार्म भर रहे हैं प्यून में,
शिक्षा से ज़्यादा फीस की रफ्तार है,
शिक्षा प्रणाली मेरे देश की बीमार है,
छोटे-छोटे वस्त्रों में संस्कृति सिमट गयी,
पश्चीमी सभ्यता देश से लिपट गयी,
अंग प्रदर्शन में कपड़े उतर गये,
दौड़ती आवाम के सपने बिखर गये,
काला धन विदेश की तिजोरियों में सेट है,
जिनका हक़ उस पर वो सोए भूख़े पेट हैं,
वादों के पुल पर अपनी तो गाड़ी है,
भाषणों की उम्मीद पर चल रही नाड़ी है,
लोकतंत्र में अधिकार है मतदान का ,
हमने ही चयन किया ऐसे महान का,
जर्जर अवस्था मेरे देश की जो कर दिए,
व्याख्या क्या करें नेता जी के योगदान का,
हर समस्या अपनी जुगाड़ से सुलझाते हैं,
सपनों के भारत को ख्वाब में ही पाते हैं,
है,