आधुनिक प्रेम
आप सभी को हिन्दी दिवस की बहुत बहुत बधाई
आज हिन्दी दिवस पर एक कविता प्रेषित कर रहा हूँ-
आधुनिक प्रेम
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मैने बर्षो पुरानी
प्रेमिका से कहा
मै आपसे
अपरिमित
प्रेम करता हूँ
यह सुनकर
उग्र होकर
बोली
डूब मरो चुल्लू
भर पानी मे
मैने हताश
निराश होकर
प्रेमिका का
जीवन
खंगाला
मैंने सोंचा
वो मुझसे
दूर क्यों हो गई है
क्या मुझे छोड़
किसी और की हो गई है|
मै उसकी झील
जैसी आंखों
लहलहाती फसलों
की भांति
काले केशों
को अमूल्य
निधि समझकर
श्रंगार की कविता
लिखकर
कभी कभी
कविता को
कविता भेंट कर
उर के भावों को
प्रकट करता था
पुष्प समझकर
दूर से
अधखिली
पंखुड़ियों को
देखकर
स्नेह रूपी
नीर की कुछ बूंदे
उसके अंगों पर
उड़ेल कर
ग्रीष्मकाल मे
तपन से बचाता था
स्वयं को
काम की भूख से
बंचित रखकर
जलाता था |
आज से
दो दशक पहले
प्रेम
निराकार
अदृश्य
होकर भी
ईश्वरीय बरदान
मानव जाति
का अमूल्य आभूषण था|
अब प्रेम
आधुनिकता की
पगडंडियों पर
चलकर
ब्योम मे
पक्षी बनकर
उड़कर
फलों से लदे
एक पेड़ से
दूसरे पेड़ पर पहुँच कर
एक दिन खट्टे
एक दिन मीठे
एक दिन तीखे
सभी प्रकार के
फलों को
चखकर
मुस्कराकर
स्वाद ले रहा है
आधुनिक प्रेम
टेकनिकल बनकर
सच्चे प्रेम की
खिल्ली
उड़ाकर
पल रहा है
और
सच्चा प्रेम
दीनों की भांति
दोनों हाथ फैलाये
गिड़गिड़ाकर
लड़खड़ाकर
दो चार कदम
चलकर
भीख मांग रहा है|
रमेश त्रिवेदी
कवि एवं कहानीकार