आधुनिक नर से नारी
ना तुम राम ना मैं सीते
सौ मुश्किल के बाद हम मिलते हैं ।
पुनः जीवन में मुश्किल खड़ा कर रहे हो।
अपनी आदत छोड़ दो ।
गमों से नाता तोड़ दो।
यूं ही तो जीवन और मृत्यु का चक्र हैं।
जगत में,अजीब सी दूरी जिदंगी के पास हैं।
ना तुम राम ना मैं सीते।
मुस्कुरा के बोल रही हूँ ।
सदियों से ढो रही हूँ।
बदनामी हमेशा नारी के नाम रहा हैं।
कुलटा कहना हमेशा आसान रहा है।
ना तुम राम ना मैं सीते
आजकल शादी खिलवाड़ होते जा रहा हैं।
मौलिकता खोता जा रहा है।
उदाहरणार्थ मां सीता का लिया जा रहा हैं।
वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे,
जिसने सारा जीवन सीता के बिना ,सीता के नाम किए।
निर्णय शादी का सोच कर लिया करे ।
विवाह – विच्छेद, ना किया करें।
हालात ये अच्छी नहीं
व्यक्ति संवाद करे ना करें विवाद
नर, नारी विवाह – विच्छेद ना किया करें।
कहना सरल हैं।
जीवन कठिन है,
आज भी देती मां सीता
कर्ममय, संघर्ष मय , त्यागमय
नारी को जीवन जीने शक्ति देती है।
सीता माँ सचमुच आदर्श बेटी, पत्नी , माँ
अपना महान अस्तित्व समर्पण
भावों का अर्पण ,जीवन जीना जी कर दिखलाई हैं।
विश्व विवशता से जूझ रहा है ।
व्यक्ति टूटी,बिखरी जिंदगी जी रहा हैं
कौन किसे समझ रहा हैं ।
इसलिए गुस्से से कह रही हूँ ,
हालत से लड़ रही हूँ
ना तुम राम ना मैं सीते
क्या मैं सच कह रही हूँ _डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार ,
भागलपुर ,दिनांक-1-4-022की मौलिक स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।