आधुनिक दोहे
1. बच्चों को हम क्या कहें, हम सब भी नादान
फुर्सत किसको है कहां, जो देखे संतान ।।
2. इच्छा रही न वंश की, शादी भी अब “खोज”।
मानो सूरज पी गया, अपना ही अब ओज ।।
3.आंगन रहा न छत रही, रही न सिर पर धूप।
अंंबर में छतरी उड़ी, क्या मौसम क्या रूप।।
4.घर से हारा आदमी, जीते जग संग्राम।
सब अपनों में क़ैद हैं, फिसली रेत तमाम।।
सूर्यकांत