आधुनिक जगत मे, नारी
आधुनिकता का मुखौटा लिए
हम आज भी, वही खड़े है
नारी जब , चाहे आगे बढ़ना
उसे अड़ाने पर अड़े है
परनार को हौसला दे
बात आजादी की करे
घर की नारी वश मे हो
हौसले पस्त,वो दासी रहे
उड़ान भरे तो, पर काटे
न माने तो रिश्ते काटे
भावनाओं की मार संग
वो जुल्म सभी के छांटे
कुछ डर समाज के नाम पर
कुछ रिश्ते नातो के दाम पर
कुछ अपने अहं और मान पर
तो कुछ पुरुषत्व के गुमान पर
वो नारी को छलते है
और
बात शिखर की करते है
मगज स्वयं का विक्षित,
और दोष नारी पर गढ़ते है