आधुनिकता
सुबह से शाम तक
यूँ ही चले जा रहे हैं
निरुद्देश्य निश्चिंत
ऐसा नही है कि
उद्देश्य न हो
यहाँ तो उद्देश्य है
फिर भी निरुद्देश्य है
चिंता है भविष्य की
फिर भी निश्चिंत है
सब जानते हुए भी
अनिश्चितता के दौर मे
आधुनिकता से प्रभावित
हम चले जा रहे हैं ।