“आधुनिकता का परछावा”
हरियाणवी काव्य-रचना संख्या:240.
“आधुनिकता का परछावा”
(वीरवार, 01 नवम्बर 2007)
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कित खोगी वा छटा निराली
हरी-भरी गाँव की हरियाली।
आधुनिकता का परछावा पड़गया
ना दिक्खें ईब हल ठाए हाळी।।
अनजाना -सा काम यो होगया ।
बेमतलब -सा नाम यो होगया ।।
सूखगी काच्ची कलियों की डाली:
हाल ठीक था होगी बदहाली ।
आधुनिकता का परछावा पडग्या
ना दिक्खै ईब हल ठाए हाली: ।।
आपणे बी ईब न्यारे होगे।
ओखे घणे नजारे होगे।।
झड़गी न्यूं चेहरां की लाली
गिलास नहीं ईब बरतै प्याली।
आधुनिकता का परछावा पड़गया
ना दिक्खै ईब हल ठाए हाली।।
-सुनील सैनी “सीना”
राम नगर, रोहतक रोड़, जीन्द(हरियाणा)-१२६१०२.