आधुनिकता का दंश
समय का खेल देखिए
आधुनिकता की रेल देखिए
पांव पसारती दुनिया बदल रही है,
कुछ भी सोचने समझने का
मौका तक नहीं दे रही है।
आखिर देखिए न
हमारे आपके जीने खाने और रहन सहन के साथ ही
खेती बाड़ी और हमारे आचार विचार भी,
शिक्षा, कला, संस्कृति, परंपराएं, स्वास्थ्य
परिवहन, संचार, तीज त्योहार और संस्कार भी
कितनी तेजी से बदल रही है।
इतना तक ही होता तो और बात थी
रिश्ते और रिश्तों की अहमियत
और संबंधों में भी घुसपैठ करती जा रही
ये बेशर्म आधुनिकता की बयार बह रही।
मां, बाप, भाई, बहन, चाची चाची,
ताऊ, ताई, बाबा, दादी, मामा मामी, मौसा, मौसी,
बुआ, फूफा, बहन, बहनोई ही नहीं
पति, पत्नी और बच्चे भी इसकी चपेट में आ गए हैं।
और हम कभी मातृदिवस, कभी पितृदिवस
भाई अथवा बहन दिवस
बेटी दिवस और जाने कौन कौन सा
दिवस मनाने में मगशूल हैं,
सच मानिए! हम आप ही रिश्तों का मान सम्मान
आधुनिकता की आड़ में मटियामेट कर रहे हैं।
दुहाई राम, लक्ष्मण,भरत,
कंस, रावण, विभीषण, कुंभकर्ण के अलावा
कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा, देवकी, यशोदा,
मंथरा, मंदोदरी पन्ना धाय ही नहीं
और भी अनगिनत उदाहरण दे रहे हैं।
पर कभी सोच विचार किया है
कि आज हम आप क्या हैं?
आने वाली पीढ़ियों के लिए
कौन सा उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं?
नहीं न! हम तनिक विचार भी नहीं कर रहे हैं
हमारे विचारों पर आधुनिकता ने कब्जा कर लिया है।
जिसने रिश्तों की मर्यादा ही नहीं
अहमियत को भी हमसे छीन लिया है,
हमें नितांत स्वार्थी और संवेदनहीन बना दिया है
आधुनिकता के राक्षस ने
हमें इंसान कहलाने लायक नहीं छोड़ा है।
फिर हम दिवस कोई भी क्यों न मनाएं
औपचारिकताओं ने शिखर पर झंडा गाड़ दिया है,
हमारे बुद्धि विवेक को अपने कब्जे में कर लिया है
और हमें चलती फिरती मशीन में तब्दील कर दिया है।
थोड़ा देकर हमारा सब कुछ छीन लिया है,
सूकून के पल हों या रिश्तों की मिठास
हर जगह अपना जहर फैला दिया है,
हर रिश्ते से हमको दूर कर दिया है।
आधुनिकता के लबादे में लपेट
हमें बड़ी खूबसूरती से गुमराह कर दिया है
हमें अब इंसान कहाँ रहने दिया है
आधुनिकता ने अपनी माला हमें ही नहीं आपको भी
दिन रात जपने पर मजबूर कर दिया है।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश