Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Dec 2021 · 5 min read

आधुनिकता – एक बोध

शीर्षक – आधुनिकता : एक बोध

विधा – आलेख

संक्षिप्त परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राजस्थान।
मो. 9001321438

सृष्टि का रथ कालचक्र के अनुसार चल रहा है। सृष्टि के इस रथ को भला कौन है ऋजु-वक्र चला सकता है ? मनुष्य ने अध्ययन की सुविधा के लिए हर युग को कालखंडों में विभाजित किया। किसी भी कालखंड में यंत्रों का अभाव नहीं था। कालखंडों में युग को विभाजित तो कर दिया लेकिन मानवता की गहरी सड़क पर जो गड्ढे हर काल में रहे उसे किसी ने नहीं पाटा। इतिहास हमें यह बताता कि भूतकाल में क्या था आने वाले कल में क्या था यह भी इतिहास ही बताएगा। इन सबसे परे प्रश्न यह है कि जब सब इतिहास में छिपा और छपा है तो आधुनिकता क्या है ! आधुनिकता पर प्रश्न हर काल में उठे। बहस ने भी युद्ध जैसा रूप ग्रहण कर लिया।
सुनो! मैं बताता हूँँ इस संबंध में, काल कभी किसी से नहीं लड़ा, हर युग में प्रेम की ही महत्ता रही है। कटु वचनों को सुनने के लिए मन को और कड़ा कर लो। जो आज हमें दिखता है वह कल भी था और आने वाले कल में भी होगा। बस! साधनात्मक अंतर होगा।मानवीय भावना जैसी थी वहीं आज भी है किंतु उन्हें अभिव्यक्त करने का प्रारूप बदल गया। शासकीय व्यवस्था, सत्ता, कूटनीति, भूख, गरीबी और लाचारी यह आज के युग की उपज नहीं है बल्कि भूतकाल में भी विद्यमान थी।
जब हम रामायण महाभारत को देखते हैं राम-सीता भरत,लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सूर्यवंशी नारियों का विवरण है। महाभारत में कुंती के पुत्र माद्री के पुत्र द्रोपदी, कृष्ण का विवरण; रामायण में मेघनाथ, कुंभकरण, रावण वशिष्ठ, हनुमान, जामवंत, सुग्रीव, विभीषण, मंदोदरी।महाभारत में शकुनि, दुर्योधन,कौरववंशी,कर्ण,भीष्म, विदुर संजय इनका ही चित्रण है । इनमें नायक उपनायक खलनायक सहायक ही तो है। यही सब आज की फिल्मों में चित्रित है। केवल मात्र नाम बदला है। फिल्मों के ये सारे पात्र हमारे महाकाव्यों में है।फिल्म तो आधुनिकता का पर्याय नहीं हो सकती।

आज का विज्ञान धर्म पर अविश्वास प्रकट करता है। समझ में यह नहीं आता कि विज्ञान वैज्ञानिक बनाता है या वैज्ञानिक विज्ञान बनाते हैं। विज्ञान और धर्म दोनों की सत्ता कर्म पर टिकी है। विज्ञान प्रयोग पर विश्वास करती है और धर्म का विश्वास कर्म है। प्रयोग के उपरांत परिणाम मिलने पर नियम बनता है प्रयोग ही विज्ञान का तर्काधार है इसी पर वो विश्वास करते है, धर्म का तर्क आधार कर्म है। इस पर विज्ञान प्रतिबंध लगाता है। दोनों के अपने-अपने तर्क हैं, दोनों तर्क के आधार पर टिके हैं तो विरोधाभास क्यों? तर्क-तर्क में भेद क्यों! यह तो आधुनिकता के दायरे में नहीं आ सकता।
शासन दण्ड भोग कुटिलता यह सब पुराने हैं फिर भी बने हुए हैं आज तक। यह भी आधुनिक नहीं। बेरोजगारी पहले भी थी और आज भी है किंतु बेरोजगारी कहाँँ है! बेरोजगारी का चक्र क्या है! काम करने का इच्छुक होना चाहिए कर्म धरातल विस्तृत है। दो अक्षर अंग्रेजी पढ़े लोग अपनी नई अदा दिखाकर सब पर रौब जमाते हैं। जबकि सत्य में वो कुछ करने में सक्षम नहीं होते। बस! विरोध का झंडा लेकर सड़कों पर आ जाते हैं। पता नहीं ये अंग्रेजिया लोग किस फेर में है। बेरोजगारी के नाम पर सब को लूटते जा रहे हैं। ये भी आधुनिकता नहीं।

टीवी सिनेमा मोबाइल कंप्यूटर इंटरनेट तकनीक का विस्तार रेल वायुयान रॉकेट उपग्रह मिसाइल परमाणु बम रडार यह सब मानवता के विध्वंसक भंडार नहीं है तो और क्या है! यह तो आधुनिक हो नहीं सकता! मांस का भक्षण, शराब, जुआ, हत्या, दुष्कर्म, अपहरण लूट-पाट,कम वस्त्र पहनना, चश्मा लगाकर जींस पहनना, सिगरेट, तंबाकू, गुटखा-पान यह भी तो आधुनिक नहीं! लोग इसी के इर्द-गिर्द अपना जीवन गँवा रहे हैं।
उस काल से इस काल तक भौतिक, सामाजिक, शारीरिक,मानसिक, आर्थिक, व्यावहारिक इन सब में परिवर्तन होते आए हैं और होते रहेंगे इस परिवर्तन को आधुनिकता नहीं कह सकते। ये परिवर्तन आधुनिकता की परिसीमा भी नहीं है।
आज कोई माता-पिता के पास नहीं बैठता, वक्त तो सबके पास है उसे बेकार में गवा देंगे पर बैठ नहीं सकते। समाज में क्या हो रहा है इसका भी उन्हें ज्ञान नहीं! संयुक्त परिवार टूट गए छोटे परिवार में बच्चे अपने बचपन को गँवा चुके हैं। फैशन के फेर में इंडिया पड़ा है। एक छोटी सी कुबुद्धि को आइडिया कहते हैं। रोग और रोगी बढ़ते जा रहे हैं।आधुनिकता के नाम पर सब मरते जा रहे हैं। शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। चारों ओर धूल-धुँँआ और अनजानापन ही बढ़ रहा है। तथाकथित आधुनिक लोग गाँँव की ममता खोने को तत्पर है। गाँँव-गगन,धरा-धरातल, धूली सुगंध गोरैयों का गान, मोर केकारव,कोयल का गान, खगवृंद के कलरव की तान सब जाने पहचाने से हैं पर अफसोस! सब भूल गए। अब रामा-श्यामा खो गया। गुडनाईट गुडमॉर्निंग आ गया, रामा-श्यामा तो गवारों की पहचान और ऐसा बोलने वाले सभ्य हो गए। वाह रे! देश किस तरह फिरंगी लाटो की चाल का और बिगड़ी आदतों का भंडार बन गया। यह तो आधुनिकता नहीं है बिल्कुल भी नहीं।
हर युग में संस्कृति-सभ्यता का प्रसार,विस्तार और परिष्कार हुआ। वर्तमान में नयापन लाने के नाम पर नग्न संस्कृति मुँँह ताक रही है। संस्कृति की करुण पुकार मुझ तक आ रही है। इसका उद्धार कैसे करूँँ !
” हर बातों पर पर्दा डालने का तर्क है आधुनिकता ।” आधुनिकता क्या है! कोई इसको स्पष्ट क्यों करें! हर क्षेत्र में इसकी अलग परिभाषा गढ़ी हुई है। मेरे सिवा कोई नहीं जानता आधुनिकता क्या है।
आधुनिकता एक बोध है मृत्यु पर जीवन का विस्तार है। आधुनिकता आद्यः निकटता है। इस सृष्टि में एक नया विश्वास है जो सृष्टि चक्र में ऊर्ध्वाधर और क्षितिज पार है। आधुनिकता जीवन में एक पहेली इसे जितना चाहो उलझा लो। आधुनिकता चर-अचर, जीवन-मरण के ऊपर एक रहस्यमयी बोध है।
आधुनिकता में नारी की कर्मठता की अधिकता हो, नारी संपूर्ण कर्म अधिकारी हो, शासन में स्वेच्छाचारी और हर आयामों में उत्तरदायी तत्त्व हो। एक बात विचार करने की है कि आठ ग्रहों में पृथ्वी पर जीवन इसलिए है क्योंकि पृथ्वी स्त्री स्वरूपा है। नारी जीवन दायिनी, अणु बीज में शक्ति स्वरूपा है। नारी की कोख सृष्टि का प्रतिबिंब है। नारी का विकल्प तो विधाता के पास भी नहीं है। सर्व संपन्न होते हुए भी नारी अद्यतन उपेक्षित ही हैं। नारी जीवन को सम्मान कभी नहीं मिला। छुट-पुट चर्चा होती है! आधुनिकता तभी आधुनिक होगी जब नारी सर्वोच्च होगी। नारी सनातन भी है तो प्राचीन भी। नारी भवेता भी है तो नारी ही आधुनिकता है।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 3 Comments · 208 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मेरे जाने के बाद ,....
मेरे जाने के बाद ,....
ओनिका सेतिया 'अनु '
"पत्नी और माशूका"
Dr. Kishan tandon kranti
थूंक पॉलिस
थूंक पॉलिस
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"बोलती आँखें"
पंकज कुमार कर्ण
अब हम क्या करे.....
अब हम क्या करे.....
Umender kumar
चाँद सी चंचल चेहरा🙏
चाँद सी चंचल चेहरा🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
पुरुषो को प्रेम के मायावी जाल में फसाकर , उनकी कमौतेजन्न बढ़
पुरुषो को प्रेम के मायावी जाल में फसाकर , उनकी कमौतेजन्न बढ़
पूर्वार्थ
विश्वास किसी पर इतना करो
विश्वास किसी पर इतना करो
नेताम आर सी
थैला (लघु कथा)
थैला (लघु कथा)
Ravi Prakash
बड़ी अजब है जिंदगी,
बड़ी अजब है जिंदगी,
sushil sarna
2954.*पूर्णिका*
2954.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सियासत
सियासत
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
* मैं बिटिया हूँ *
* मैं बिटिया हूँ *
Mukta Rashmi
कि  इतनी भीड़ है कि मैं बहुत अकेली हूं ,
कि इतनी भीड़ है कि मैं बहुत अकेली हूं ,
Mamta Rawat
तुम्हें लिखना आसान है
तुम्हें लिखना आसान है
Manoj Mahato
बेटी हूँ माँ तेरी
बेटी हूँ माँ तेरी
Deepesh purohit
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
आकाश महेशपुरी
सीख
सीख
Adha Deshwal
मोहन कृष्ण मुरारी
मोहन कृष्ण मुरारी
Mamta Rani
बुद्धि सबके पास है, चालाकी करनी है या
बुद्धि सबके पास है, चालाकी करनी है या
Shubham Pandey (S P)
*कमबख़्त इश्क़*
*कमबख़्त इश्क़*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
क़यामत ही आई वो आकर मिला है
क़यामत ही आई वो आकर मिला है
Shweta Soni
मेरा दामन भी तार- तार रहा
मेरा दामन भी तार- तार रहा
Dr fauzia Naseem shad
धार्मिक सौहार्द एवम मानव सेवा के अद्भुत मिसाल सौहार्द शिरोमणि संत श्री सौरभ
धार्मिक सौहार्द एवम मानव सेवा के अद्भुत मिसाल सौहार्द शिरोमणि संत श्री सौरभ
World News
घर वापसी
घर वापसी
Aman Sinha
मतिभ्रष्ट
मतिभ्रष्ट
Shyam Sundar Subramanian
जर जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
जर जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
सत्य कुमार प्रेमी
तुम यह अच्छी तरह जानते हो
तुम यह अच्छी तरह जानते हो
gurudeenverma198
The Sky Above
The Sky Above
R. H. SRIDEVI
करारा नोट
करारा नोट
Punam Pande
Loading...