आधा आधा जहां
पुरुष नारी के बिना अधूरा
तो नारी बिन नर पूरी कैसे है
दोनों फलक बराबर रहे हमेशा
इसमे मजबूरी कैसे है
लड़के लड़े हक़ के लिए सही है पर
आधे जहाँ के लिए ही चूल्हा चौका जरूरी कैसे है
औरत का हक़ आदमी ने छीना है
बात पूरी होनी चाहिए, हर मंच पर पूरी कैसे है
मान सम्मान नर और नारी दोनों का हक़ है
इसे भीख सा मांगना पड़े ये जरूरी कैसे है
आधा आधा पूरा होना था पर आधा आधा बांट लिया
हर पैर अगर चुने अलग रास्ता तो फिर वो जोड़ी कैसे है
माँ बाप ने नही सिखाया अगर, औलाद को सिखा लेना
हर पीढ़ी कुछ आगे सीखे, ये बात फितूरी कैसे है
बेटे का फर्ज तो बेटी का किया कर्ज होता है
ढर्रे की बात इसे कहना मुंहजोरी कैसे है
समाजिक बनने को बेतुकी शर्तें सर माथे है
सही को सही कहना जी हुजूरी कैसे है
पहचान कर्म से हो जन्म से नही, ऐसा कब होगा
अभी भी जरूरी को जरूरी न कहना जरूरी कैसे है
प्रवीनशर्मा
मौलिक स्वरचित रचना