आधार छन्द- “वंशस्थविलं” (मापनीयुक्त वर्णिक)
वर्णिक मापनी- लगाल गागाल लगाल गालगा (12 वर्ण)
पिंगल सूत्र- ज त ज र
ध्रुव शब्द- “मौन” (छन्द में कहीं भी आ सकता है)
12 1 2 21 121 212
व्यतीत ज्यों #मौन हुई विभावरी।
विभीषिका देह सदा रही भरी।।
चढ़ा कुहासा चित व्योम मण्ड सा,
बजा रही तान वियोग बाँसुरी।।
बिछोह ऐसा कि न जाय रे! सहा।
वियोग कान्हा बढ़ ताप सा रहा।
पुकारती आस लिए वियोगिनी,
पिया मिले तो सजती सु-रागिनी।
नीलम शर्मा ✍️
विभीषिका-भय
मण्ड-माँड