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26 Jul 2024 · 1 min read

आदि अनंत अनादि अगोचर निष्कल अंधकरी त्रिपुरारी।

आदि अनंत अनादि अगोचर निष्कल अंधकरी त्रिपुरारी।
श्रेष्ठ जलेश्वर लोकगुड़ा कृतिभूषण दुर्जय हे! हितकारी।
नाथ अनाथन के दुख भंजन रुद्र मृदा शिव हे! सुखकारी।
नाथ पड़ो विपदा हम पे अब आन हरो प्रभु भक्त दुखारी।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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