“आदित्य-उदय”
“आदित्य-उदय”
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जग जा रे , हे जन-मानस;
होने वाला है, “आदित्य-उदय”
सोयेगा तो , सब कुछ खोएगा;
तन-मन भी तेरा , तब रोयेगा।
नित्य , प्रथम – प्रकाश से जो;
तेरा होगा, हर-दिन साक्षात्कार;
जीवन में आयेगा तब संस्कार।
तन खिलेगा ,मन खिलेगा और;
तेरा अपना ही,जीवन खिलेगा।
जग जा रे , हे जन-मानस;
होने वाला है , “आदित्य-उदय”
पशु- पक्षियों, से भी तो सीखो;
अपने जीवन , जीने की चर्या;
कैसे वो , अपने कर्म निभाते;
नित्य ,रवि- पुंज से शक्ति पाते।
पर मानव , तुम तो सोए-सोए;
हर- दिन , अपना ही गुण गाते।
अब चल , संभल-कर जग में;
आगे है , बहुत ही अंधियारा;
चाहे ये जग , जीवन तेरा अब;
मां भारती का ही बने सहारा।
जग जा रे , हे जन-मानस;
होने वाला है , “आदित्य-उदय”
चल अब , उठ जा तू भी, और;
अपने जीवन का भाग्य जगा दे,
तू मानव प्यारा , इस देश का ;
ये बात तू , अब सबको बता दे;
आगे बढ़ कर तू, अपने देश में;
अब, आदित्य-प्रकाश फैला दे।
जग जा रे , हे जन-मानस;
होने वाला है , ‘आदित्य-उदय’..
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….✍️पंकज “कर्ण”
……कटिहार।।