#आदरांजलि-
#आदरांजलि-
■ पद्मभूषण शारदा सिन्हा।
[प्रणय प्रभात]
सुयोग व दुर्योग भी सुख-दुःख की तरह एक सिक्के के दो पहलू हैं। जो अक़्सर एक दूसरे से रूबरू होते भी दिखाई देते हैं। कल एक सुयोग छठ महापर्व के श्रीगणेश के रूप में बना, तो दुर्योग श्रीमती शारदा सिन्हा के निधन की ख़बर के रूप में सामने आया। संयोग यह है कि छठ महापर्व और शारदा जी के बीच दशकों का जुड़ाव रहा। जिनके गाए लोकगीतों ने छठ महापर्व को सरस् बनाया, उन्होंने इसी पर्व के पहले दिन नश्वर संसार को अलविदा कह दिया। वो भी अपनी माटी से कोसों दूर, देश की राजधानी दिल्ली में। जहां वे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उपचार के लिए भर्ती थीं।
01 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल में जन्मीं शारदा जी ने लोकगीत-गायन से लेकर शास्त्रीय गायन तक में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। बहुचर्चित फ़िल्म “मैने प्यार किया” में उनके द्वारा गाया गया गीत “कहे तोसे सजना, ये तोहरी सजनिया” ख़ासा लोकप्रिय हुआ। पूर्व में मायानगरी के लिए गाए गए अन्यान्य गीतों की तरह।
72 वर्ष की आयु में संगीत-जगत को अपनी आवाज़ देकर विदा हुईं शारदा सिन्हा जी को अनेक सम्मान व अलंकरणों से नवाज़ा गया। जिनमें देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक अलंकरण “पद्मभूषण” सर्वोपरि है। उनके प्रयाण के समाचार से उनके असंख्य प्रशंसक दुःखी व मायूस हैं। उनका अंतिम संस्कार पटना (बिहार) में राजकीय सम्मान के साथ होना है। वो भी आस्था व उत्साह के उस परिवेश में, जो उनकी कर्णप्रिय आवाज़ से रसमय बना हुआ है। छठ महापर्व के चलते। उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश-दुनिया के कोने-कोने में। अब इसे सुयोग कहें, दुर्योग या कुछ और, समझ से परे है। शारदा-पुत्री स्व. शारदा सिन्हा जी के प्रति भावपूर्ण श्रद्धासुमन। पूज्य छठ माता (कात्यायिनी) उनकी दिव्य आत्मा को अपने श्री-चरणों में स्थान दे व संतप्त परिजनों व चाहने वालों को साहस, संयम, सम्बल व सांत्वना। ऊँ शांति, शांति, शांति।।
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