Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jul 2024 · 7 min read

#आदरांजलि-

#आदरांजलि-
😢 अलविदा मेरे हमनाम, हमपेशा साथी “प्रभात झा।”
★ स्मृति-दर्पण में उभरर्ती एक सहज छवि।
★ संतप्त परिवार के प्रति सम्वेदनाएँ।
【प्रणय प्रभात】
राजनीति और राजनेताओं पर जम कर लिखने के बाद भी मैंने राजनेताओं के बारे में लेखन से अक़्सर परहेज़ किया है। वजह सिर्फ़ यह रही कि झूठ मुझसे लिखते नहीं बनता और सच पढ़ने का माद्दा लोगों में नहीं होता। ख़ास कर सियासी जमात वालों और उनके चाहने वालों में। बावजूद इसके, कुछ चेहरे व चरित्र रहे, जो राजनीतिक होने के अलावा भी अपनी किसी विशिष्टता के कारण मुझे उनके बारे में यथायोग्य लिखने पर बाध्य कर गए। इनमें प्रेरक कवि व अद्भुत वक्ता स्व. श्री अटल बिहारी बाजपेयी, धर्मीक विद्वान व प्रखर वक्ता स्व. श्री रमाशंकर भारद्वाज, सहज-सरल किंतु बेबाक वक्ता स्व. श्री रामरतन सिंह जाट जैसे गिने-चुने नाम उल्लेखनीय हैं। जिनका पुण्य-स्मरण करते हुए दिमाग़ का सहारा नहीं लेना पड़ा। लेखनी ख़ुद चली और खूब चली। आज एक बार फिर कुछ ऐसा ही हो रहा है।
मन व्यथित है राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित अग्रज प्रभात झा के देहावसान की दुःखद ख़बर से। जिनके साथ मेरे वैयक्तिक सम्बन्धों का सूत्रपात लगभग चार दशक पहले हुआ था। बात 1983 की है, जब वे ग्वालियर से प्रकाशित दैनिक समाचार-पत्र “स्वदेश” को अपनी सेवाएं दे रहे थे। दमदार लेखन के कारण वे मुझे भी उतना ही प्रभावित करते थे, जितना औरों को। यह दौर मेरे लेखन का शैशव-काल था। मैं उन दिनों “पत्रलेखक” था और कस्बे के पहले पत्रलेखक के रूप में “संपादक के नाम पत्र” लिखा करता था। पत्रलेखन की शुरुआत दैनिक “स्वदेश” व “आचरण” के माध्यम से हुई। समस्या आधारित पत्र बिना “काट-छांट” छपने से हौसला बढ़ा और यह काम एक जुनून बन गया। सएआल भर में लेखनी स्थानीय समस्याओं से आंचलिक मुद्दों के रास्ते प्रादेशिक व राष्ट्रीय विषयों तक जा पहुंची। तब तक छोटी-मोटी रचनाएँ भी मेरे लेखन का अंग बन गाईं। जो हास्य-व्यंग्य पर केंद्रित होती थीं। बाद में प्रेरक प्रसंग लिखे जाने लगे। जिन्हें समुचित स्थान मिलने लगा।
अगले ही साल मैं नई सड़क (ग्वालियर) से छपने वाले साप्ताहिक समाचार-पत्र “जय स्वतंत्र भारत” का संवाददाता बन गया। जिसके प्रधान सम्पादक थे श्री कालका प्रसाद शिवहरे। बड़े-बड़े समाचार छपने लगे। दैनिक पत्रों के स्थानीय संवाददाता मेरे समाचारों की प्रतिलिपि लेकर छपवाने लगे। जिनमे ज़्यादा समाचार आयोजनों पर केंद्रित होते थे। संस्था स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों के आमंत्रण आने लगे। पहचान लगातार बढ़ती जा रही थी। मध्यप्रदेश पत्रलेखक संघ नामक एक संगठन ने मुझे श्योपुर इकाई का अध्यक्ष बनाया। यह सफ़र कालान्तर में राष्ट्रीय पत्रलेखक मंच के प्रदेश महासचिव के पद तक ले गया। जिसके अध्यक्ष “मनोहर कहानियां” के संवाददाता श्री सोमदत्त शास्त्री (विदिशा) हुआ करते थे। आधे दशक की इस यात्रा के बीच मेरी मान्यता एक पत्रकार के तौर पर हो चुकी थी। स्थानीय पत्रकार मेरे समय, श्रम व समर्पण का भरपूर लाभ ले रहे थे। मेरी धुन और निष्ठा को भांप कर। मिलता-जुलता कुछ था नहीं। उल्टा खर्चा ही होता था, क़लम-कागज़ व अन्य सामग्री की नियमित खरीद पर। ट्यूशन कर के कमाओ और लेखन व पत्रकारिता पर उड़ाओ। यह सब इसलिए लिखना पड़ रहा है, कि सतत संघर्ष के इसी दौर ने उस दौर में किसी क़ाबिल बनाया। ईमानदार पत्रकारिता का दौर था। आज जैसा जातिवाद, वर्गवाद, क्षेत्रवाद भी नहीं थी। राग-द्वेष और कपट भी लगभग न के बराबर। ऐसा न होता तो कस्बेनुमा श्योपुर का साधनहीन प्रभात ग्वालियर नगर के नामी पत्रकार अपने हमनाम प्रभात से कैसे मिल पाता? इतना सब लिखने की क़वायद यही सब समझाने के लिए की गई। जो आप में से बहुतों को विषयांतर भी लग सकती है। जो सही नहीं है।
बहरहाल, वापस लौटता हूँ 1984-85 के दौर में। तब अंचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस समर्थित “आचरण” से टक्कर विपक्ष की आवाज़ के रूप में संघ-समर्थित “स्वदेश” बखूबी ले रहा था। उन दिनों इसके प्रधान सम्पादक श्री राजेन्द्र शर्मा जी हुआ करते थे और सम्पादक श्री जयकिशन शर्मा। जबकि आचरण में श्री एचआर कुरेशी व डॉ. राम विद्रोही। उन दिनों जब भी मेरा ग्वालियर जाना होता, मैं जयेंद्रगंज स्थित स्वदेश कार्यालय अवश्य जाता था। जिंसी नाला नम्बर-दो स्थित आचरण कार्यालय में भी। कुछ लोगों से कामचलाऊ परिचय था। नियमित लिखने व छपने के कारण पहचान भी। मेरे साथ एक ही दिन “साप्ताहिक भद्राचल समाचार” से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले बाल-सखा व सहपाठी जितेंद्र सक्सेना भी प्रवास में साथ होते थे। यही दौर था, जब प्रभात जी झा से मेरी पहली भेंट अकस्मात हुई। मैं स्वदेश कार्यालय के बाहरी द्वार पर खड़ा था। तय कार्यक्रम के अनुसार टेम्पो से उतरे जितेंद्र ने जैसे ही मेरा नाम लेकर आवाज़ दी, द्वार से बाहर सड़क की ओर आता एक स्कूटर मेरे पास पहुंच कर रुक गया। पिछली सीट पर सवार एक सज्जन ने पास पहुंचे जितेंद्र के चेहरे पर सवालिया नज़रें डालीं। जानना चाहा कि उनका क्यों पुकारा गया? जितेंद्र ने जब कहा कि मैने अपने मित्र को पुकारा तो वे समझ गए कि उन्हें ये भ्रम नाम के कारण हुआ। इसी दौरान पता चला कि उनका नाम प्रभात झा है। लगा कि कोई स्वप्न साकार हुआ। इसी परिचय के दौरान यह जान कर सुखद आश्चर्य हुआ कि वे भी मेरे नाम व काम से भली-भांति परिचित हैं और मेरा लिखा पढ़ते रहे हैं। इसके बाद उन्होंने तक़रीबन 20 मिनट हमारे साथ बातचीत की। मिलते रहने को कहा और रवाना हो गए। हम भी अपने घर लौट आए। लग रहा था, मानो कोई किला जीत आए हों। इसके बाद तीन-चार बार उनसे भेंट हुई। सार्थक वार्ता के बीच कुछ सीखने को भी मिला। जितेंद्र कांग्रेसी विचारधारा से जुड़ाव के चलते उनसे दोबारा नहीं मिला।
देखते-देखते समय बीतता गया। वर्ष 1991 में समीपस्थ राजस्थान के नवगठित बारां ज़िले में मेरी नियुक्ति साप्ताहिक से दैनिक हुए अख़बार “राष्ट्र-ध्वज” में सम्पादक के पद पर हो गई। कुल 5 माह बाद मेरी घर-वापसी हुई और मैं पत्रकारिता के बजाय उर्दू संकलनों के सम्पादन व अध्यापन में संलग्न हो गया। यह सिलसिला 1995 में दैनिक नवभारत से जुड़ कर सक्रिय पत्रकारिता आरम्भ करने से पूर्व मेरा ग्वालियर जाना नहीं हुआ। मतलब पुराने साथियों से मेल-मुलाक़ात बाधित रहीं। वर्ष 2001 में नवभारत छोड़ने के बाद 2018 तक मैने दर्ज़न भर अखबारों व चैनलों के लिए सेवा का क्रम जारी रखा। कार्यगत अस्थिरता के बावजूद पत्रकारिता उतार-चढ़ाव के साथ चलती रही। जो 2018 में दैनिक भास्कर की सेवा से छुटकारा पाने तक जारी रही।
दूसरी ओर देश-प्रदेश की राजनीति ने करवट ली। भारतीय जनता पार्टी ने दोनों स्तर पर सत्ता हासिल कर ली। संघ व संगठन के प्रति प्रतिबद्ध नेताओं को सत्ता व संगठन में अहम भूमिका दी जाने लगी। चिंतन के पुरोधा व लेखनी के धनी प्रभात झा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जैसे ऊंचे पद पर विराजमान हो गए। यही नहीं, उन्हें राज्य सभा सांसद व पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद को सुशोभित करने का भी अवसर मिला। मुझे न नेताओं के पीछे भागने की आदत थी, न उनसे सम्बन्ध बनाने व भुनाने में कोई रुचि। निजी हित के लिए याचना कड़े संघर्षों के बावजूद न सोच में रही, न स्वभाव में। ऐसे में उम्र में काफी बड़े होकर भी सदा मित्रवत व्यवहार करने वाले प्रभात जी से दूरी बढ़नी तय थी और बढ़ी भी। वर्ष 1990 से 2012 तक हमारे बीच किसी स्तर पर न कोई भेंट हुई, न चर्चा। क़रीब 22 वर्ष का फ़ासला छोटा नहीं होता। वो भी नामी पत्रकार से माननीय राजनेता बन कर सतत दायित्व और अपार भीड़ के बीच घिरे एक इंसान के लिए। पता था कि सत्ता व सुविधा लोगों की चाल, चेहरे व चरित्र को रातों-रात बदल देती है। देख भी चुका था तमाम छुटभैयों को वक़्त के साथ गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए। वो भी छटांक भर की मामूली सी सफलता के बाद। ऐसे में झा साहब से अपने दोस्ताना सम्बन्ध की बात करना भी अपनी खिल्ली उड़वाने जैसा था।
इसी बीच 2013 में प्रभात जी का श्योपुर आगमन तय हुआ। तब वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर थे। तमाम कार्यक्रमों के बीच पत्रकार-वार्ता का भी आयोजन था। मैं भी मीडिया बिरादरी के साथ आयोजन स्थल पर समय-पूर्व पहुंच चुका था। क़रीब एक घण्टे के इंतज़ार के बाद भीड़ से घिरे प्रभात जी सभागार में पहुंचे। भारी शोर-शराबे के बीच भाजपा के संवाद प्रमुख रह चुके पत्रकार साथी व अग्रज श्री अरुण ओसवाल ने सभी साथियों का परिचय कराना आरम्भ किया। जैसे ही मेरी बारी आई प्रभात जी बोल पड़े- “बताने की ज़रूरत नहीं भाई! ये प्रभात जी हैं। मेरे बरसों पुराने मित्र।” सच में, चौंक गया मैं। कुछ देर के लिए नेताओं को लेकर मानस में पलती धारणा बदलती सी प्रतीत हुई। उन्होंने बेहद गर्मजोशी से हाथ मिलाया। देर तक चली वार्ता के दौरान उन्होंने अधिकांश सवालों के जवाब भी मुझसे मुख़ातिब होते हुए दिए। उस दिन का एक-एक पल आज भी मेरे ज़हन में है।
प्रभात जी से मेरी अंतिम भेंट मुश्किल से क्षण भर के लिए हुई। मौका था उनके सुपुत्र चि. तुषमुल के शुभ-विवाह का। भोपाल के पीपुल्स मॉल के ताज परिसर में आयोजित आशीर्वाद समारोह में हज़ारों की भीड़ थी। देश-प्रदेश से लेकर छोटी जगहों तक के नेता व कार्यकर्ता जनसैलाब का हिस्सा बने हुए थे। मैं भी आमंत्रण पा कर वहां पहुंचा था। सहयोगी के तौर पर भतीजा हर्ष (आशुतोष) गौड़ भी साथ था। नवयुगल को बधाई देने वालों की बेहद लंबी कतार में एक मैं भी था। केंद्रीय मंत्री श्री सत्यनाराययण जटिया के ठीक पीछे। बेटे-बहू के पास खड़े प्रभात जी की नज़र मुझ पर पड़ी। चेहरे पर वही आत्मीय मुस्कान। भारी भीड़ के बीच इससे ज़्यादा कुछ सम्भव था भी नहीं शायद। पता नहीं था कि एक घण्टे की मौजूदगी के बीच पल भर की यह मुलाक़ात आख़िरी होगी। इस भोपाल प्रवास के बाद फिर वही फ़ासले। वही व्यस्तताएं और संकोच।
गत दिनों उनके प्रयाण की खबर मिली। मन विषाद से भर गया। आज मन को हल्का करना ज़रूरी लगा। बस रख दिया संवेदना का एक दीप शोकमग्न अंधेरे की दहलीज़ पर एक सहज-सरल दिव्य आत्मा के नाम। प्रभु श्री राम जी से प्रार्थना दिवंगत की आत्मा की परम् सद्गति व चिर-शांति के लिए। संतप्त परिवार के साथ भावपूरित सम्वेदनाएँ। ऊँ शांति शांति शांति।।
😢💐😢💐😢💐😢💐😢
-सम्पादक-
न्यूज़ & वयूज़
श्योपुर (मप्र)

1 Like · 94 Views

You may also like these posts

पापी करता पाप से,
पापी करता पाप से,
sushil sarna
अधूरा इश्क़
अधूरा इश्क़
Dr. Mulla Adam Ali
*डॉक्टर चंद्रप्रकाश सक्सेना कुमुद जी*
*डॉक्टर चंद्रप्रकाश सक्सेना कुमुद जी*
Ravi Prakash
वक्त और शौर्य
वक्त और शौर्य
manorath maharaj
Read in English
Read in English
Rituraj shivem verma
आज़ादी के दीवानों ने
आज़ादी के दीवानों ने
करन ''केसरा''
कुछ लोग इस ज़मीन पे
कुछ लोग इस ज़मीन पे
Shivkumar Bilagrami
विरोध
विरोध
Dr.Pratibha Prakash
🙅एकहि साधे सब सधे🙅
🙅एकहि साधे सब सधे🙅
*प्रणय*
छल फरेब की बात, कभी भूले मत करना।
छल फरेब की बात, कभी भूले मत करना।
surenderpal vaidya
एक साक्षात्कार - चाँद के साथ
एक साक्षात्कार - चाँद के साथ
Atul "Krishn"
Most of the time, I am the kind of person who tries her best
Most of the time, I am the kind of person who tries her best
पूर्वार्थ
चला गया
चला गया
Rajender Kumar Miraaj
सावन की बारिश
सावन की बारिश
Rambali Mishra
कहानी -
कहानी - "सच्चा भक्त"
Dr Tabassum Jahan
मायूसियों से भरे चेहरे...!!!!
मायूसियों से भरे चेहरे...!!!!
Jyoti Khari
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Rekha Drolia
सच्चा प्यार
सच्चा प्यार
Mukesh Kumar Sonkar
First impression is personality,
First impression is personality,
Mahender Singh
यूं जरूरतें कभी माँ को समझाने की नहीं होती,
यूं जरूरतें कभी माँ को समझाने की नहीं होती,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
क्यों तुम्हें याद करें
क्यों तुम्हें याद करें
gurudeenverma198
और करो नादान तुम , कुदरत से खिलवाड़
और करो नादान तुम , कुदरत से खिलवाड़
RAMESH SHARMA
" वाह री दुनिया "
Dr. Kishan tandon kranti
तुम गए कहाँ हो 
तुम गए कहाँ हो 
Amrita Shukla
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Vijay kumar Pandey
मोबाइल की चमक से भरी रातें,
मोबाइल की चमक से भरी रातें,
Kanchan Alok Malu
हिंदू सनातन धर्म
हिंदू सनातन धर्म
विजय कुमार अग्रवाल
Lesson we gain from The Ramayana
Lesson we gain from The Ramayana
Harekrishna Sahu
लड़कियां शिक्षा के मामले में लडको से आगे निकल रही है क्योंकि
लड़कियां शिक्षा के मामले में लडको से आगे निकल रही है क्योंकि
Rj Anand Prajapati
स्वप्न
स्वप्न
NAVNEET SINGH
Loading...