आदरणीय क्या आप ?
क्या आप जानते हैं कुछ
मेरे ख्याल से जानते तो होंगे
यह जो आपके आने का इंतजार
कर रहे हैं न शहर वाले अधिकारी
शायद अपने कुकर्म छुपाना चाहते हैं
आपको सुंदरता दिखाना चाहते हैं !!
आपके आने से पहले यह
शहर चमन सा लगने लगा
सड़क के गड्ढ़े भरने लगे
मिटटी सड़क की उठने लगी
क्यूंकि आप आ रहे हैं
और यह आपको सफाई दिखा रहे हैं
ताकि आपको लगे यह साफ़ रहता है !!
कितनी लीपा पोती करते हैं अधिकारी
शायद उनको अपनी नौकरी है प्यारी
जनता का क्या वो तो कीड़े मकौड़े है
आपके जाने के बाद फिरेगी मारी मारी
धुल चाटेगी शरीर पर रोजाना उसी तरह
किस से कहे दुखड़ा सब की है लाचारी !!
वहां आपको नहीं ले जाएंगे यह अधिकारी
जहाँ सड़ रहा कूड़ा, फ़ैल रही बिमारी
जनता के साथ कितनी होती अत्याचारी
सारी बगीआ में कर दी इन्होने फुलवारी
दीवारे भी चमक उठेगी उस दिन ,क्यूंकि
उस दिन आपकी आने की होगी तैयारी !!
आदरणीय ,कभी वहां भी हो आया करो
बिना सूचना कभी घूम जाया करो
अपनी आँखों से देखना शहर की हालत
सिर्फ कागजात पर भरोसा जताया न करो
बहुत झेलते हैं शहर के लोग रोजाना
कभी उनका दुःख दर्द भी सुन जाया करो !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ