आदमी
ये देखो क्या से क्या हो रहा,
संस्कार अपने सारे खो रहा,
दिखावे की होड़ में गुम हो,
बोझ गलतियों की ढो रहा।
आपस में बेवज़ह की रार है,
दिमाग पर अना खूब सवार है,
प्रेम और विश्वास दम तोड़ते,
छोटी-छोटी बातों पर तकरार है।
रिश्तों में प्रेम का अभाव है,
सहयोग का नही कोई भाव है,
अपने स्वार्थ के पूर्ति के लिए,
जतलाते झूठा अपना प्रभाव है।
कदम जो किसी का लड़खड़ाए,
कोई थामने नही कभी आए,
पीछे से पैर खींच लेते हैं सभी
जो कोई आगे बढ़ना कभी चाहे।
झूठी संवेदना देखो दिखाते हैं,
इस तरह लोगों को भरमाते हैं,
हक़ीकत कब तक छुपेगी भला,
यह कैसे नही समझ पाते हैं।